किसान आन्दोलन:भारत सरकार बैकफुट पर,बिल वापस लेने की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा-कितना सही और कितना गलत.?लेकिन प्रमुख विपक्षी दलों की निकली हवा

 किसान आन्दोलन:भारत सरकार बैकफुट पर,बिल वापस लेने की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा-कितना सही और कितना गलत.?लेकिन प्रमुख विपक्षी दलों की निकली हवा


जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट


केन्द्र सरकार ने बिल लाकर उनकी नजरों में समस्याएं पैदा की और फिर बिल से हाथ खिंचकर वाहवाही भी लूट रही है। दूसरी ओर यदि सरकार के पक्ष को देखी जाये तो बैकफुट पर आने से देश के एक वर्ग में किरकिरी भी हो रही है कि प्रधान मंत्री जी की भूमिका आयरन मैन जैसी नहीं रही : अजीत सिन्हा


राँची,झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 19 नवंबर, 2021 ) । यह ठीक है कि प्रधान मंत्री जी ने भरे दिल से न चाहते हुए भी आंदोलन रत किसानों की भावना को समझते हुए नये कृषि कानून के तीन बिलों को वापिस लेने की घोषणा की है जो राष्ट्र हित में है कि नहीं ऐसी कानूनों की विवेचना एवं अध्ययन उपरांत समझ के बाद ही कही जा सकती है लेकिन मुझे इतनी बात अवश्य ही समझ में आ रही है कि प्रधान मंत्री जी ने एक बहुत बड़ा मुद्दा विपक्षी दलों से अवश्य ही छिन लिया है और इस मुद्दे पर उनकी दुकानदारी अवश्य ही बंद होने वाली है हालांकि राकेश टिकैत के नेतृत्व में आन्दोलन रत किसान इतनी जल्दी अपनी बोरिया - बिस्तर समेटने वाले नहीं हैं क्योंकि उनके हाथ आखिर लगा क्या..? क्या किसानों की समस्याओं का निराकरण हुआ..? आंदोलन के दौरान दिवंगत किसानों के परिजनों को क्या मिला..? क्या आंदोलनकारी किसानों की समस्याओं को सुनी गई..? एम. एस. पी. जैसे मुद्दे का क्या हुआ..? ऐसी बहुत सारी बातें अनुत्तरित हैं और फ़िलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सरकार ने बिल लाकर उनकी नजरों में समस्याएं पैदा की और फिर बिल से हाथ खिंचकर वाहवाही भी लूट रही है।
दूसरी ओर यदि सरकार के पक्ष को देखी जाये तो बैकफुट पर आने से देश के एक वर्ग में किरकिरी भी हो रही है कि प्रधान मंत्री जी की भूमिका आयरन मैन जैसी नहीं रही । जिससे विघटन कारी तत्वों को 370 एवं 35 अ जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने का एक मौका मिल सकता है और एक नई आंदोलन की भी शुरुआत हो सकती है जो कि राष्ट्र हित में नहीं होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि प्रधान मंत्री जी ने विपक्ष से उनका एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा छिन लिये तो विपक्ष नये मुद्दों को लेकर एक नये आंदोलन की तैयारी कर सकती है लेकिन इससे भारत की सरकार को इतनी फायदा अवश्य होगी कि आंदोलनकारी किसान दो भागों में अवश्य विभक्त हो जायेंगे जिससे आन्दोलन कमजोर स्तिथि में चली जायेगी जो कि सरकार यही चाहती है कि या तो आंदोलन पूर्ण रूप से समाप्त हो जाये या धीरे-धीरे समझदार किसान उनके आंदोलन को त्याग दें। यहां पर यह भी विदित हो कि आंदोलनकारी किसानों की बिल वापसी की माँग को सरकार ने फौरी तौर पर मान ली है जो कि उनकी प्रमुख माँग थी लेकिन फिर भी अपने हठधर्मिता की वज़ह से यदि वे आंदोलन वापस नहीं लेते हैं तो अवश्य ही वे सभी आम जनता - जनार्दन की नजरों में अवश्य ही गिर जाएंगे और यदि वे आंदोलन का रास्ता त्याग देते हैं तो भी सरकार की ही जीत समझी जाएगी कहने का तात्पर्य यह है कि दोनों स्थितियों में सरकार के हाथ में लड्डू ही है और अब देखते हैं कि यह लड्डू पचती है कि नहीं अर्थात् वह उनके समर्थन के वोटों में कन्वर्ट होती है कि नहीं, इसका जवाब तो उत्तर प्रदेश एवं पंजाब में आने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम ही बता पायेंगे।


अब ये प्रश्न उठना लाज़मी है कि थंपिंग मेजोरेटी से लबरेज सरकार की ऐसी क्या मजबूरी हो गई कि वह इतनी मजबूत स्तिथियों में होते हुये भी उसे बैकफुट पर आना पड़ा जबकि वर्तमान स्तिथि में उनकी सरकार को गिराने या गिरने का कोई भय नहीं है। निश्चित रूप से आगामी चुनावों में वोट खोने का भय उन्हें अवश्य ही सता रही होगी या सरकार के पास कोई ऐसे अवश्य ही कोई गुप्त सूचना होगी जिससे देश में बड़े पैमाने पर कानून की समस्या उत्पन्न होने वाली थी और आंतरिक समस्या से निपटना इतना आसान नहीं होता जितना कि बाहरी समस्याओं से। आखिर यहां सभी अपने हैं और अपनों पर गोली चलाना इतना आसान नहीं होता वनिस्पत बाहरी विघटन कारी तत्त्वों पर नकेल कस कर।


 

बहरहाल सरकार ने बिल वापिस करने का फैसला ले चुकी है और आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में बिल वापसी की प्रक्रिया को भी पूर्ण कर लेगी लेकिन एक बहुत बड़ा प्रश्न यह अनुत्तरित है कि बिल में जो अच्छे भाग हैं और जिससे किसानो को फायदा होने वाली थी उसका क्या होगा? और क्या किसानों के विकास संबंधित बातें गड्ढे में चली जाएगी या उसके आगे भी कुछ होगा और इसके लिए सरकार को चाहिये कि वे किसानों के हित की बातें किसानों के साथ मिल बैठ कर अमलीजामा को पहनाये ताकि आगे किसी भी तरह के विरोध का सामना सरकार को नहीं करने पडे क्योंकि इससे सरकार की विश्वसनीयता खतरे में पड़ सकती है जिसकी पुनरावृत्ति भी उचित नहीं होगी और साथ में सरकार की  बार - बार किरकिरी भी जनता - जनार्दन की नजरों में उचित जान नहीं पड़ेगी और ऐसी स्थितियों से सरकार को अवश्य ही बचने का प्रयास करनी चाहिए ।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित।

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