लोक आस्था सूर्य उपासना का महापर्व छठ व्रत की महिमा अपरम्पार : अजीत सिन्हा

 लोक आस्था सूर्य उपासना का महापर्व छठ व्रत की महिमा अपरम्पार : अजीत सिन्हा

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट


सूर्य भगवान की उपासना प्राणियों को ओज एवं शक्ति प्रदान करने वाली है। नियम, निष्ठा, संयम के साथ की जाने वाली छठ पर्व नहाय-खाय से शुरू होकर पारण पर समाप्त होता है : अजीत सिन्हा

बोकारो/झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 09 नवंबर,2021)। सनातन धर्म में वैसे देवी - देवों की महिमा अपरम्पार है, जिनका प्रकटीकरण होता है और इनमें सूर्य देव सबसे आगे की पंक्ति में इसलिए स्थान ग्रहण करते हैं । इनका प्रकटीकरण लगभग नित्य ही होता है और इन्हें दर्शन करने की शक्ति एवं क्षमता हम मानवों सहित पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी को मिली हुई है। क्योंकि अन्य महान देवों - देवियों की साक्षात् दर्शन करने की शक्ति केवल विरले भक्तों को ही होती है । जैसे रामकृष्ण परमहंस को माता काली ने साक्षात् दर्शन दिये । ये बात सभी लोग जानते हैं, हालांकि सूर्य देव के सशरीर दर्शन किसी मानव को नहीं होते हैं । लेकिन उनके प्रकाश पुंज की आभा चारों ओर बिखरती ही रहती है, जिससे समझने के लिए काफी है । उनकी कृपा हम मानवों सह प्राणियों पर बनी हुई है। और बिना उनके इस पृथ्वी पर प्राणियों के जीवन की कल्पना व्यर्थ है ।

इसलिए सूर्य भगवान की उपासना प्राणियों को ओज एवं शक्ति प्रदान करने वाली है। नियम, निष्ठा, संयम के साथ की जाने वाली छठ पर्व नहाय-खाय से शुरू होकर पारण पर समाप्त होता है । जिसमें पवित्रता का बहुत ही महत्व है और इस हेतु साफ - सफाई पहले पायदान पर है। नहाय - खाय से तात्पर्य यह है कि घर को पवित्र करने के बाद व्रती स्नान कर विभिन्न शाकाहारी सात्विक भोजन को ग्रहण करते हैं । जिसमें कद्दू (लौकी) का उपयोग भरपूर मात्रा में किया जाता है और साथ में कद्दू मिश्रित चना दाल, अरवा चावल का भात, लौकी की सब्जी, बचका इत्यादि व्रती सहित घर के लोग ग्रहण करते हैं, और यहां विदित हो कि सभी पकवान शुद्ध घी से बने होते हैं। उसके अगले दिन खरना होता है जिसमें व्रती दिन भर निर्जला (बिना पानी) उपवास रखते हुए शाम में गुड़, दूध व अरवा चावल मिश्रित खीर जिसे रसिया कहते हैं और रोटी अरवा चावल का पिट्ठा का प्रसाद ग्रहण कर बंधु - बांधव, परिजनों एवं समाज के लोगों को भी खिलाते हैं।

खरना के साथ ही छत्तीस (36) घंटों का निर्जला, निराहार अर्थात् बिना खाना - पानी का व्रत शुरू हो जायेगा। खरना के अगले दिन सूप - दौरा फल - फूल एवं सुगंध - दीया - बाती के साथ शुद्ध घी से बनी ठेकुआ से लदे सूप से अस्ताचलगामी (डूबते हुये सूर्य) का अर्घ्य व्रती सहित परिजन देते हैं ठीक उसके दूसरे दिन उगते हुये सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ये अर्घ्य निकट के नदी, तालाब, पोखर या घर में बने विशेष तौर के हौदे जो पानी से कम से कम कमर भरी होती है और आजकल तो लोग भीड़ से बचने या अपनी सुविधा के अनुसार घर की छत पर बने हुए हौदे में भी देते हैं।

 
प्रातः कालीन अर्घ्य के बाद निकट में स्तिथ सूर्य मंदिर में जाकर अपनी मत्था भी टेकते हैं और उसके बाद सभी घर आकर प्रसाद ग्रहण कर व्रती के बाद विभिन्न सात्विक पकवानों को ग्रहण का पारण की क्रिया को पूर्ण करते हैं।
यह व्रत सुख, शांति, समृद्धि के साथ पुत्र - पौत्र सहित पुत्री - दामाद इत्यादि के प्राप्ति हेतु ही की जाती है। इस पर्व की एक खासियत यह है कि इसमें छठ से संबंधित गीत बहुत ही मन प्रिय, भाव प्रिय एवं सरस होते हैं जो खासकर छठ के मौकों पर ही गाये जाते हैं।
उपरोक्त आलेख अजीत सिन्हा द्वारा प्रेस कार्यालय को दिया गया।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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