राष्ट्रीय गायन जन-गण-मन के सार्वजनिक हुऐ 27 दिसंबर,2021 को 110 वर्ष हो जाएंगे पूरे - वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव

 राष्ट्रीय गायन जन-गण-मन के सार्वजनिक हुऐ 27 दिसंबर,2021 को 110 वर्ष हो जाएंगे पूरे - वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव


जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट

जब यह पहली बार सार्वजनिक तौर पर गाया गया,तो वह राष्ट्र गान नहीं था.…


'मैं उन लोगों को जवाब देना अपनी बेइज़्ज़ती समझूँगा जो मुझे इस मूर्खता के लायक समझते हैं.'' : रविन्द्रनाथ टैगोर

हिंदुस्तान में रिवाज है कि पहले ‘सर्वशक्तिमान भगवान’ की आराधना की जाती है, फिर कार्यक्रम शुरू होता है । उनका लिखा 'जन गण मन' पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दूसरे दिन का काम शुरू होने से पहले गाया गया था।05 स्टैंजा का यह गीत राष्ट्रगान नहीं माना गया था।

समाचार डेस्क/नई दिल्ली,भारत ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 26 दिसंबर, 2021 ) । गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार यों ही नहीं मिला,वह इसके लिए सर्वथा उपयुक्त और योग्य साहित्यकार थे।वह विश्व साहित्यकारों की श्रृंखला की ऐसी मजबूत कड़ी है, जिनकी एक रचना-जन-गण-मण-भारत का राष्ट्र गीत है, तो दूसरी रचना-आमार सोनार बांग्ला-बांग्लादेश का राष्ट्र गीत है। यही नहीं, श्रीलंका के राष्ट्रगीत की रचना में भी उनके सकारात्मक और रचनात्मक परामर्शों की अपनी प्रासंगिकता है।
वह अपनी कोई भी कविता एक बैठकी में शायद ही लिखे हों।कई बार लिखते.काटते,फिर लिखते।किसी- किसी रचना के पूरा होने में महीनों-सालों लग जाते।
गुरुदेव ने जन-गण-ज्ञन का पहला ड्राफ्ट 1908 में लिखा था.शान्तिनिकेतन में वो जगह आज भी सुरक्षित है,जहां उन्होंने इस गाने को लिखा था ।
भारत के मुक्ति संग्राम में 1911 का साल बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस साल जॉर्ज पंचम भारत आए और तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड हार्डिंग्स के कहने पर बंग-भंग का निर्णय रद्द किया।बिहार और उड़ीसा को एक अलग राज्य का दर्जा दे दिया था।इससे भारतीयों में अंग्रेजों के न्याय के प्रति भरोसा पैदा हुआ।
एक उच्च पदस्थ अधिकारी,जो गुरुदेव के दोस्त थे, ने उन्हें राजा के स्वागत समारोह के लिए गीत लिखने का निवेदन किया.इस निवेदन ने उन्हें हैरान कर दिया. इससे उनके हृदय में गहरी पीड़ा हुई. इस जबर्दस्त मानसिक आशांति की प्रतिक्रिया में उन्होंने जन-गण-मन में भारत के उस भाग्य विधाता (God of destiny) की विजय के बारे में लिखा जिसने हर उत्थान और पतन और उबाड़-खाबड़ रास्तों में भी भारत के रथ की बागडोर को दृढ़ रखा. वह भाग्य विधाता, वह चिरस्थाई नेतृत्वकर्ता कभी भी जॉर्ज पंचम, जॉर्ज षष्ठम या और कोई जॉर्ज नहीं हो सकता था।


कांग्रेस का 27वां अधिवेशन 26दिसंबर,1911 से कोलकाता में प्रस्तावित था। यह सच है कि 1911 में कांग्रेस के मॉडरेट नेता चाहते थे कि अधिवेशन में सम्राट दंपति का महिमामंडन किया जाए,लेकिन इस बात के लिए टैगोर तैयार नहीं हुए।लेकिन, कांग्रेस के जलसे में जॉर्ज की प्रशंसा भी की गई और उन्हें धन्यवाद भी दिया गया।
हिंदुस्तान में रिवाज है कि पहले ‘सर्वशक्तिमान भगवान’ की आराधना की जाती है, फिर कार्यक्रम शुरू होता है.उनका लिखा 'जन गण मन' पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दूसरे दिन का काम शुरू होने से पहले गाया गया था। 05स्टैंजा का यह गीत राष्ट्रगान नहीं माना गया था।आखिरी स्टैन्जा में एक लाइन थी: ‘निद्रितो भारतो जागे’ मतलब ‘सोता इंडिया जाग गया है’. इसका इस्तेमाल जवाहर लाल नेहरू ने ‘Tryst with destiny’ स्पीच में किया था.'जन गण मन' के बाद जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में भी एक गाना गाया गया था. सम्राट के आगमन के लिए यह दूसरा गाना रामभुज चौधरी द्वारा रचा गया था.यह हिंदी में था और इसे बच्चों ने गाया था,बोल थे-बादशाह हमारा....' सत्ता-समर्थक अख़बारों ने ख़बर कुछ इस तरह दी कि जिससे लगा कि सम्राट की प्रशंसा में जो गीत गाया गया था वह टैगोर ने लिखा था.
'अमृत बाज़ार पत्रिका' में यह बात साफ़ तरीके से अगले दिन छापी गई.पत्रिका में कहा गया कि कांग्रेसी जलसे में दिन की शुरुआत गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित एक प्रार्थना से की गई.टैगोर का यह गाना संस्कृतनिष्ठ बंग-भाषा में था,यह बात'बॉम्बे क्रॉनिकल' नामक अख़बार में भी छपी.अंग्रेजी अखबार द स्टेट्मसैन ने 28दिसंबर,1911 को लिखा,बांग्ला कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने सम्राट का स्वागत करने के लिए अपने द्वारा रचित एक गीत गाया.बांग्ला अखबार बंगाली ने इसके उलट इस अंतर को साफ तौर पर स्पष्ट करते हुए 28दिसंबर,1911 को लिखा था, 'कांग्रेस का वार्षिक समारोह महान बांग्ला कवि रवींद्रनाथ टैगौर द्वारा रचित गीत को गाए जाने के साथ शुरू हुआ. इसके बाद राजा जॉर्ज के प्रति वफादारी प्रकट करने वाला प्रस्ताव पास किया गया. इसके बाद राजा के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए लड़को-लड़कियों के एक ग्रुप ने एक गीत गाया.'
जन-गण-मन में 'अधिनायक' शब्द पर एक विवाद शुरू हो गया।कहां गया कि 'जन-गण-मन'ब्रिटिश जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा गया था।देशभर में यह विवाद शुरू हो गया कि अधिनायक और भारत का भाग्यविधाता कौन है?गीत के अंग्रेजी अनुवाद में टैगोर ने राज राजेश्वर को किंग ऑफ ऑल किंग्स लिखकर विरोधों को और हवा दे दी। 
टैगोर ने आरोपों को बेबुनियाद बताया।उन्होंने 1912 में ही स्पष्ट कर दिया कि गाने में वर्णित 'भारत भाग्य विधाता'के केवल दो ही मतलब हो सकते हैं: देश की जनता,या फिर सर्वशक्तिमान ऊपर वाला—चाहे उसे भगवान कहें, चाहे देव.टैगोर के कहे का अर्थ था कि वे किसी अंग्रेज शासक को भारत का भाग्य विधाता नहीं कह रहे बल्कि ये शब्द ईश्वर या देश की जनता के लिए हैं । 
टैगोर ने आरोपों को ख़ारिज करते हुए साल 1939 में पुलिन बिहारी सेन को लिखे खत में लिखा,'मैं उन लोगों को जवाब देना अपनी बेइज़्ज़ती समझूँगा जो मुझे इस मूर्खता के लायक समझते हैं।''
टैगोर का यह खत प्रभात कुमार चटर्जी द्वारा लिखी गई उनकी जीवनी 'रवींद्रजीवनी' में भी छपा है. टैगोर की देशभक्ति पर सवाल उठाने वालों की बात इसलिए भी गलत लगती है क्योंकि टैगोर ने वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग में अंग्रेजो द्वारा किए गए नृशंस हत्याकांड के बाद अंग्रेजी हुकूमत की ओर से उन्हें दी गई नाउटहुड यानी सर की उपाधि लौटा दी थी.
इस गाने की बड़ी खासियत यह थी कि यह उस वक़्त व्याप्त आक्रामक राष्ट्रवादिता से परे था.इसमें राष्ट्र के नाम पर दूसरों को मारने-काटने की बातें नहीं थीं.गुरुदेव ने इसी दौरान एक छोटी सी पुस्तक भी प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था 'नेशनलिज़्म'. यहाँ उन्होंने अपने गीत 'जन गण मन अधिनायक जय हे' की तर्ज़ पर यह समझाया कि सच्चा राष्ट्रवादी वही हो सकता है जो दूसरों के प्रति आक्रामक न हो ।
आने वाले सालों में 'जन गण मन अधिनायक जय हे' ने एक भजन का रूप ले लिया.कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशनों की शुरुआत इसी गाने से की जाने लगी । 1917में टैगोर ने इसे धुन में बांधा । धुन इतनी प्यारी और आसान थी कि जल्द ही लोगों के मानस पर छा गई.1919 में टैगोर ने जब इस गीत का बांग्ला से अंग्रेजी में अनुवाद किया और फिर मारग्रेट (जोकि पश्चिमी संगीत की जानकार थीं) के साथ मिलकर इसकी धुन भी तैयार की. यही धुन आज तक देश के राष्ट्रगान के तौर पर प्रयोग की जाती है. इस गीत के अंग्रेजी अनुवाद और धुन ने इसे जबर्दस्त लोकप्रियता दिलाई।
कुछ लोग  विवाद को बराबर उठाते रहे । चिढ़कर 1939 में टैगोर ने फिर कहा-जॉर्ज चौथा हो या पांचवां, मैं उसके बारे में क्यों लिखूंगा? इस विवाद का जवाब देना भी मैं अपना अपमान समझता हूं।
24 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान पर हस्‍ताक्षर करने के लिए संविधान सभा आयोजित की गई और इसी दौरान देश के प्रथम राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने आधिकारिक रूप से ‘जन गण मन’ को राष्‍ट्रगान और ‘वंदे मातरम’ को राष्‍ट्रगीत घोषित किया.मूल गीत संस्कृतनिष्ठ बंग्ला में पांच पैरा हैं। जिनमें से पहले पैरा के हिंदी रूपांतरण को ही भारत के राष्ट्रगान के तौर पर अपनाया गया है.
इतनी स्पष्ट ऐतिहासिकता के बाद भी आरएसएस पृष्ठभूमि के राजीव दीक्षित,मार्कण्डेय काटजू जैसे विद्वान और सुब्रमण्यम स्वामी या कल्याण सिंह जैसे राजनीतिज्ञ पूरी बेशर्मी, बेहयापन और निर्लज्जता के साथ यह स्थापित करने की कोशिश करते हैं कि राष्ट्रगान में अधिनायक और भारत भाग्यविधाता जैसे अलंकरण जॉर्ज पंचम की स्तुति गान में लिखे गए हैं और यह मांग करते हैं कि राष्ट्र गान को संपादित किया जाना चाहिए, तो इनकी बौद्धिकता और नीयत पर शक होना लाजिमी है।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुमार श्रीवास्तव का आलेख समस्तीपुर प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा प्रकाशित व प्रसारित।

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