राष्ट्रीयता एवं राजनीति में अपनी पताका को बुलंद रखने वाले आज राजनीति के क्षेत्र में अति पिछड़े क्यों हैं : अजीत सिन्हा

 राष्ट्रीयता एवं राजनीति में अपनी पताका को बुलंद रखने वाले आज राजनीति के क्षेत्र में अति पिछड़े क्यों हैं : अजीत सिन्हा


जनक्रांति कार्यालय से संवाद सूत्र की रिपोर्ट


कायस्थों सोंचों आखिर राजनीति में पिछड़े क्यों हो...? : अजीत सिन्हा

समाचार डेस्क/राँची,झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 29 दिसम्बर, 2021) । एक समय धर्म, अध्यात्म, सामाजिकता, राष्ट्रीयता एवं राजनीति में अपनी पताका को बुलंद रखने वाले आज राजनीति के क्षेत्र में अति पिछड़े क्यों हैं इस पर निश्चित रूप से कायस्थ समाज को मनन की आवश्यकता है और फैसले लेकर इस क्षेत्र में बढ़ने की ओर प्रयास करने की जरूरत है।
जिस वंश ने हज़ारों सालों तक इस पृथ्वी पर राज कर एक सुदृढ़ व्यवस्था को बनाए रखा और अपने मालिकाना हक को साबित किया वह आज नौकरशाही की प्रवृति का गुलाम कैसे बना..?
इसके लिए इस समाज को अपने इतिहास में जाना होगा जहां पूरे आर्यावर्त (पुराना भारत) पर राजतंत्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत उनका केवल शासन ही नहीं था वे सभी क्षेत्रों में अव्वल स्थान रखते थे चाहे वह धर्म या अध्यात्म का क्षेत्र हो या सामाजिकता या राष्ट्रीयता का क्षेत्र हो या राजनीति का।


इसके पीछे उनमें एकता की कमी, जातिवाद में विश्वास न करना, सभी को समान समझकर अपने जाति के लोगों को आगे नहीं बढ़ने देने या नहीं बढ़ाने की प्रवृति या बढ़ते हुए स्वजनों की टांग को खींचना निश्चित रूप से जिम्मेदार है।
कल के मालिक आज के नौकरशाह कैसे हो गये? ये कायस्थ समाज के लिए मनन करने की बात है.?
इस समाज के लोगों ने धर्म एवं अध्यात्म के क्षेत्र में अपने गुणों के कारण निश्चित रूप से अपने परचम को लहराया है चाहे हम सभी स्वामी विवेकानंद जी की बात करें या अरविंदों घोष की, एक बहुत बड़ी कायस्थों में अमर नामों की फेहरिस्त है।
इस पर भी मनन की आवश्यकता है कि आखिर मुगल एवं अंग्रेज इनके रहते हुए अपने पुरातन भारत में अपने पैर कैसे पसार पाये क्योंकि हमने हमने अहिंसा परमो धर्मः को तो अंगीकार तो कर लिया लेकिन क्षमाशीलता एवं दया करने की प्रवृति अपने अंदर जरूरत से ज्यादा होने की भूल की वज़ह से धर्म हिंसा तथैव च को अंगीकार करना भूल गये जिससे आततायी तत्व बलवती होती गईं और हम अपना साम्राज्य एवं राज्य खोते हुये चले गये क्योंकि अत्याधिक ज्ञान अर्जन करने की वज़ह से हममें प्रतिकार की जगह सहनशीलता समाती गई हालांकि कुछ राजाओं ने अपनी मातृभूमि की भूमि की रक्षा हेतु अपने प्राणों की सर्वोच्च बलिदान दी लेकिन वह काफी नहीं था क्योंकि देश की पूरी जनता - जनार्दन उनके साथ नहीं थी और गद्दारों, देशद्रोहियों ने अराजक तत्त्वों को बढ़ने मे भरपूर साथ दिया जिसका परिणाम यह है कि अखण्ड भारत की जगह हमें सिमटा हुआ भारत नजर आता है।


देश लुटता रहा, आततायी बलवती होते गये, माँ भारती का अंग छिन्न-भिन्न होता रहा और भारत के वासी स्वार्थ के वशीभूत होकर केवल अपने उत्कर्षता हेतु प्रयत्नशील होते रहे लेकिन तब भी कायस्थ समाज सनातनी एकजुटता के लिये प्रयत्नशील रहे लेकिन अपने समाज के लोगों को आगे बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उनकी सोंच उच्चतम थी लेकिन अपने समाज के लोगों के प्रति निम्नतम।
कायस्थ समाज के लोगों ने देश को पराधीनता से मुक्ति दिलाने हेतु बढ़ - चढ़कर भाग लिया चाहे क्रांतिकारिकता की क्षेत्र में सबसे कम उम्र में बलिदान देने वाले खुदी राम बोस जी का नाम हो या नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का या इस समाज के अन्य कायस्थ विभूतियों का। लेकिन कतिपय स्वतंत्रता से पहले जिस तरह से नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी को गायब करा स्वार्थलोलुपता की वज़ह से गाँधी - नेहरू - जिन्ना की तिगडी ने देश विभाजन की पटकथा को लिखी उससे इस समाज द्वारा आने वाले देश के सर्वोच्च मुखिया नेताजी सुभाष चंद्र बोस का गायब हो जाना देश की एकीकरण एवं प्रगति में बाधक बनी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का भी एक ही मकसद था देश को पराधीनता से मुक्ति दिला अखण्ड भारत के सपनों को साकार करना और इसके लिए निश्चित रूप से देश वासियों को एक जुट कर एवं वैश्विक स्तर पर भी अपने नेतृत्व का लोहा मनवाया लेकिन वे अपनों के बीच ही हार गये और उनकी कुत्सित एवं विभाजनकारी नीति का शिकार हो गये और इसके लिये उस समय की तिगडी ही जिम्मेदार है नहीं तो उनके नेतृत्व में आज का भारत कुछ और ही होता।

नेताजी ने कभी भी जातीयता नहीं की और सभी को साथ लेकर ही चले क्योंकि उस समय के भारत की यही डिमांड थी और उनकी नजरों में राष्ट्र ही प्रथम था। लेकिन थोड़ी सी भी स्वार्थ अपने समाज के लोगों के लिए रखते तो निश्चित रूप से समाज के कुछ बंधु राजनीति की उच्चतम बुलंदियों पर होते हालांकि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद एवं देश के द्वितीय यशस्वी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी भी उसी काँग्रेस से राजनीतिक रूप में अपने गुणों की पताका को फहरायी और राजनीति के उच्चतम मापदंड को स्थापित किया लेकिन इन दोनों ने भी अपने समाज की उत्थान एवं भलाई हेतु कुछ भी नहीं किया। क्योंकि इनकी नजरों में भी राष्ट्र प्रथम था।
काँग्रेस की कुत्सित शासन से मुक्ति दिलाने हेतु एवं गरीबों का उनका हक दिलाने के लिए इसी कायस्थ समाज से एक नेता और निकले जो देश में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किये गये और वे थे लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी जिन्होंने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया और देश के लोगों को इंदिरा गाँधी के शासन से मुक्ति दिलाई लेकिन उनके साथ के छुटभैये जातिवादी नेता लालू प्रसाद जैसे लोगों का प्रादुर्भाव हुआ और देश के खजाने के लूट के भागीदार चर्चित चारा घोटाले के माध्यम से हुई लेकिन इससे एक फायदा हुआ कि देश के दबे-कुचले को आवाज मिली साथ में आज की भाजपा की नींव भी रखी जा सकी। निश्चित रूप से लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी के लिये भी देश प्रथम ही था लेकिन उसके परिणाम के रूप में आज का भाजपा और जनता दल जैसे जैसे धार्मिक एवं जातिवादी दलों की उत्पत्ति। लेकिन लोक नायक जय प्रकाश नारायण जी ने भी अपने जाति के लोगों को आगे बढ़ाने का कार्य नहीं किया। इसके लिये आजादी के बाद के इस समाज द्वारा निकले नेता ही केवल जिम्मेवार नहीं हैं अपितु इस समाज के लोग भी उतने ही जिम्मेदार हैं क्योंकि प्रजातंत्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत राजनीति उन्हें हमेशा गटर के समान ही लगी और राजनीति के द्वारा देश सेवा करने की जगह इस समाज के लोगों ने अपने को नौकरशाही व्यवस्था के अन्तर्गत प्रशासनिक महकमों में अपना स्थान ग्रहण करना ही उचित समझा। और निश्चित रूप से से नौकरशाही व्यवस्था के पोषक हो गये क्योंकि उन्हें उन्हें इसका तनिक भी भान नहीं है कि उनसे कम पढ़े लिखे लोग उनके ऊपर शासन कर रहे हैं और वे सक्षम होते हुए भी राजनीति को गटर के रूप में मान रहे हैं।
देश में साम्यवाद की विचारधारा के अंतर्गत पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु जी के शासन को याद करना भी उचित ही होगा क्योंकि इन्होंने पश्चिम बंगाल में 40 से अधिक सालों तक एक क्षत्र राज किया और अपने समय में समाजवाद की आड़ में पूँजीवाद को बढ़ने नहीं दिया जो कि कायस्थ समाज से ही आते हैं लेकिन इन्होंने भी कायस्थ समाज के लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया और न ही वे कायस्थों के बच्चों को एक राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित ही करा पायें।

आइये अब थोड़ी चर्चा करते हैं वर्तमान में इस समाज के कायस्थ नेताओं की जिसमें भाजपा से निकले यशवंत सिन्हा आर. के. सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा, रविशंकर प्रसाद, ओम प्रकाश माथुर, राकेश सिन्हा और काँग्रेस में एक लंबी पारी को खेलने वाले सुबोध कांत सहाय जी इत्यादि सरीखे नेताओं की जिनके लिये या तो राष्ट्र प्रथम रही है या अपनी परिवार या अपनी जात? ये कायस्थों के लिये मनन की विषय है। कुछ वैसे भी नेता कायस्थ समाज में उभर रहे हैं जिनकी मानसिकता भी ऐसी ही है जैसे ज़द (यू) के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद जी जिन्होंने विधायक बनने हेतु न जाने कितनी बार चुनाव लड़ा लेकिन कभी भी जीत नहीं पाये, हालांकि ये कायस्थ समाज से राजनीतिज्ञ होने का दंभ भरते हैं लेकिन कभी भी इन्हें अपने समाज का पूर्ण वोट नहीं मिला जिससे वे कभी भी जीत नहीं पाये। हालांकि इन दिनों ये अपने ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस के बैनर तले कायस्थों को एकजुट कर अपनी सफलता की बाट जोह रहे हैं लेकिन इसका जवाब आने वाले समय ही उनको दे पाएगी। जब अपनी जमीन खिसकती है या नई राजनीति जमीन तलाश करने की आवश्यकता महसूस होती है तो लोग समाज की शरण में आते ही हैं और आनी भी चाहिये।
आइये अब चर्चा करते हैं कायस्थ शिरोमणि के रूप में जाने जाने वाले पूर्व राज्य सभा सांसद आर. के. सिन्हा एवं सिने स्टार एवं राजनीतिज्ञ शत्रुघ्न सिन्हा जी का। निश्चित रूप से ये दोनों अपने समाज की भलाई एवं उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहते हैं लेकिन इसके आड़ में उनकी व्यापारिक उत्कर्षता की खुली मंशा भी छुपी होती है और इन दोनों शिरोमणियों को भाजपा ने एक को तो बाहर रास्ता दिखा दिया है और फिलहाल अभी भी एक काँग्रेस के पल्लू में बंधे हुए हैं और दूसरे अपने व्यापार एवं पुत्र की उत्कर्षता में लगे हुए हैं  जो कि भाजपा में ही हैं लेकिन आर. के. सिन्हा एवं सुबोध कांत सहाय जी द्वारा अखिल भारतीय कायस्थ महासंघ के बैनर तले दो विभिन्न पार्टियों के होते हुए भी रैली कर एकजुटता का प्रदर्शन कर समाज के लिए हक की बात कर रहे हैं जो कि स्वागत योग्य है और साथ में अपनी खोई हुई राजनीतिक भविष्य भी तलाश रहे हैं जो कि उचित भी है। पूर्व उच्चतम कोटि के नौकरशाह रहे माननीय यशवंत सिन्हा जी देश के सात बार वित्त मंत्री रहे हैं जो कि इसी कायस्थ समाज से आते हैं और पहली बार किसी कायस्थ को समझ में आई कि उस समय के अपराधी, भ्रष्टाचारी राजनीतिक तत्त्वों के नीचे काम करने से अच्छा है कि स्वयं नौकरी को लात मार एवं नौकरशाही मानसिकता को छोड़ स्वयं देश के एक महत्वपूर्ण सिंहासन पर अपनी स्थान बनाई जाये और इसमें यशवंत सिन्हा जी पूरी तरह से सफल भी रहे हालांकि अब उनकी उम्र हो चुकी है इसलिये भाजपा उनको तव्वजो नहीं देती है इसलिए उन्होंने ममता बनर्जी की पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की हैसियत से कार्य कर रहे हैं लेकिन उनके पुत्र जयंत सिन्हा जी अभी भी भाजपा में हजारीबाग, झारखण्ड से सांसद हैं जो कि पूर्व केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। बिहार के कायस्थ समाज के दो विभूतियों की चर्चा भी यहां लाज़मी है राजनीतिज्ञों के रूप में वे हैं स्वर्गीय नितिन नवीन जी जो जिंदादिली की मिशाल और हर दिल अजीज थे और पटना, बिहार के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र से अनवरत कई टर्मों तक विधायक मृत्युपर्यंत तक बने रहे और आज उनके पुत्र उसी क्षेत्र से विधायक भी है और इसी क्रम में अरुण सिन्हा जी भी आते हैं जो पटना के कायस्थ बाहुल्य क्षेत्र से अनवरत विधायक हैं। वर्तमान कई ऐसे नेता हैं जो कायस्थ समाज से आते हैं और वे सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री, मंत्री, के रूप में देश की सेवा तो कर रहे हैं लेकिन कायस्थों की नहीं और आज यह स्तिथि हो गई कुछ कायस्थ दबे - कुचलों की श्रेणी में आने लगे हैं अर्थात् वे जातिवादी आरक्षण व्यवस्था के शिकार हो गये हैं और उनके नौकरशाही होने का तगमा भी उनसे उतरने वाला है। यह सही है कि बड़े - बड़े नामी गिरामी डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, बिग्रेडियर, आई. ए. एस., आई. पी. एस. लेखक, पत्रकार, कवि, साहित्यकार, यों कहें हर क्षेत्र में कायस्थों ने अपनी बुलंदियों की पटकथा देश के लोगों की सेवा कर उच्चतम स्थान को हासिल किया है वे सभी निश्चित रूप से वंदनीय हैं लेकिन राजनीति के क्षेत्र में आज भी यह समाज अपनी सोंच के कारण पिछड़ा हुआ है हालांकि नौकरी में मौका इनके लिए अब कम होने की वज़ह से कायस्थ उद्यमियों की संख्या बढ़ी है और राजनीति में भी कुछ लोगों का आगमन हुआ है लेकिन अभी इस ओर उन्हें उत्सुक होकर बढ़ने की आवश्यकता है।
इसी क्रम में कई कायस्थों ने अपनी पार्टी भी बनाई लेकिन फंड की कमी की वज़ह से उनका प्रादुर्भाव हुआ नहीं क्योंकि आज की राजनीति पूंजीवाद के आगे नतमस्तक है क्योंकि जिसके जेब में पैसा होगा वही आगे बढ़ेगा या जिसका समाज उसके साथ होगा वही आगे बढ़ पाएगा क्योंकि आज की राजनीति जाति एवं धर्म के आगे भी नतमस्तक है।
लेकिन फिर भी समाज के कुछ बुद्धिजीवियों सह नौकरशाहों ने अपनी नौकरशाही की लंबी पारी को पूर्ण कर रिटायर्ड आई. आर. एस. डॉ अनूप श्रीवास्तव एवं रिटायर्ड ब्रिगेडियर अनिल कुमार श्रीवास्तव जी के नेतृत्व में एक नई पार्टी राष्ट्रवादी विकास पार्टी की नींव को डाली है जो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी सहभागिता निभाने हेतु प्रयत्नशील है और साथ में गाजियाबाद के अशोक जी श्रीवास्तव के नेतृत्व में सुभाषवादी समाजवादी पार्टी की नींव को रखा है और दोनों पार्टियां क्रमशः अपने - अपने भाग्य को आजमा रही हैं लेकिन कौन कितना सफल होता है यह तो आने वाले समय ही बता पायेंगे लेकिन जब तक इन दोनों पार्टियों को अपने समाज के साथ राज्य वासियों का साथ नहीं मिलती तब तक इनके प्रादुर्भाव की बात बेमानी होगी।

एक और पार्टी जो कि वर्तमान समय में पिछले पच्चीस सालों से शासन अनवरत करती आ रही है वह है बीजू जनता दल जो कि नवीन पटनायक जी के नेतृत्व में अपने राज्य की विकास की ओर ओडिसा (उडीसा) में अग्रसर है और साथ में बाला साहब ठाकरे द्वारा स्थापित शिव सेना उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शासन कर रही है जो कि कायस्थ समाज से ही आते हैं और साथ में काँग्रेस के संजय निरूपम एवं भाजपा के राजू श्रीवास्तव भी इसी समाज से आते हैं जो कि राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित हैं।
इसी क्रम में कायस्थों में एकता हेतु कुकुरमुत्ता की तरह उगे कायस्थ संगठनों की बात करनी भी लाज़मी होगी जो कायस्थों में एकता की बात तो करते हैं लेकिन कभी भी एक छतरी के नीचे एकीकृत होने का प्रयास नहीं करते हैं हालांकि दो कायस्थ संगठनों अखिल भारतीय कायस्थ महासभा एवं ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस द्वारा द्वारा सभी वर्तमान राजनीतिक दलों को यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि इन्हें भी सत्ता में भागीदारी चाहिए और अधिक से अधिक कायस्थों को टिकट राजनीतिक पार्टियां इन्हें टिकट दे नहीं तो कायस्थ समाज वैसी राजनीतिक पार्टियों का बहिष्कार करेगी जिनकी पूछ उनकी पार्टियों में कायस्थों की नहीं होगी। हालांकि राष्ट्र में चौथी शक्ति के उद्भव हेतु दोनों नई पार्टियों ने उन्हें अधिक से अधिक टिकट देने का मन बना लिये लेकिन कायस्थ समाज के युवान शक्ति के साथ सभी शक्ति अपने भाग्य को राजनीति में आजमाने के लिए तैयार होंगे तभी तो बात बनेगी।
आगे नेताजी सुभाष पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं कई सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं मीडिया व देश प्रेमी संगठनों से जुड़े अजीत सिन्हा ने कहा कि अब समय आ गया है कि कायस्थ समाज अपनी उत्कर्षता हेतु केवल राजनीति में अपने भाग्य को ही न आजमाये अपितु जो इस रूप में सक्षम नहीं है वे आँख मूंदकर अपने समाज के लोगों को वोट दें चाहे वे किसी भी पार्टी के क्यों न हों? जहां दो कायस्थ आमने - सामने हों वे जीतने की हैसियत रखने वाले कायस्थ को ही वोट करें क्योंकि यही समय की मांग है तभी राजनीतिक रूप से कायस्थ स्वावलंबी हो सकते हैं।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय से संवाद सूत्र की रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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