तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीतिक अल्पज्ञानता के कारण तीनों सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा एवं इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ: संजय कुमार

 तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीतिक अल्पज्ञानता के कारण तीनों सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा एवं इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ: संजय कुमार

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट

अली अशरफ फातमी आज, वर्षों तक अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे भारतीय जनता पार्टी के सांसद गोपालजी ठाकुर (दरभंगा) के साथ, जदयू नेता एवं राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आगवानी में इस तरह खड़े हैं :संजय कुमार

दरभंगा, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 16 दिसंबर, 2021 ) । आज दिनांक 16 दिसंबर 2021 के इस तस्वीर को गौर से देखिये। कई दशकों तक मिथिलाञ्चल में राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर चेहरा, कई दफा दरभंगा से सांसद एवं लालू के हनुमान रहे, अली अशरफ फातमी आज, वर्षों तक अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे भारतीय जनता पार्टी के सांसद गोपालजी ठाकुर (दरभंगा) के साथ, जदयू नेता एवं राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आगवानी में इस तरह खड़े हैं। हमें आज भी याद है की जब लोकसभा चुनाव का परिणाम आता था तो फातमी जी को अपनी, लालू यादव एवं राष्ट्रीय जनता दल की जीत पर इतना ज्यादा भरोसा था की चुनाव परिणाम आने से पूर्व ही उनका लहेरियासराय स्थित पंडासराय वाले घर में पहले से ही दीवाली मनायी जाने लगती थी और परिणाम आने से पूर्व ही लड्डू भी बंटने लगता था।

20 नवंबर 2015 को नीतीश कुमार के नेतृत्व में आरजेडी गठबंधन के साथ जब मंत्रियों ने मंत्री पद की शपथ ली, तब ये लालू जी का परिवार प्रेम ही है की तेजस्वी और तेजप्रताप से उम्र में काफी बड़े एवं अनुभवी रहे आरजेडी के अब्दुल बारी सिद्दीकी, रामविचार राय, शिवचंद्र राम एवं चंद्रिका राय को तेजस्वी एवं तेजप्रताप के बाद, शपथ इसलिए लेना पड़ा था की ये लोग लालू परिवार से नहीं आते थे। आजीवन लालू के साथ सारथी की भूमिका में रहे हमने स्व. रघुवंश प्रसाद सिंह का भी हाल देखा है। पप्पू यादव, रामकृपाल यादव, साधु यादव सरीखे अनगिनत ऐसे नेता हैं, जिन्होने चापलूस बने रहने के बजाय अपनी प्रतिष्ठा से प्यार किया और आरजेडी छोड़ दी। विगत लोकसभा चुनाव में भी हमने देखा की जब लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर कन्हैया कुमार, पप्पू यादव एवं शरद यादव जैसे बोलने एवं काम करनेवाले नेताओं की जरूरत थी, तेजस्वी यादव ने अपनी राजनीतिक अल्पज्ञानता के कारण तीनों सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारा एवं इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ। हमें तो श्याम रजक भी याद आ रहे हैं, जिन्होंने लालू के साथ कई दशक बिताए, फिर आरजेडी छोड़ी, जेडीयू में शामिल होकर सरकार में मंत्री भी बने और बाद में परिस्थिति कुछ ऐसी बनी की उन्हे जेडीयू से निष्कासित कर दिया गया, “हारकर” फिर उन्हे अपने पुराने “घर” में वापसी करनी पड़ी। अली अशरफ फातमी के बारे में भी आपको बता दूँ की ये दो दफा आरजेडी छोडकर आज जेडीयू के साथ हैं। जुलाई 1997 में जब लालू यादव को इस्तीफा देने की नौबत आयी थी तब लालू यादव के पास एक बड़ा मौका था की वे अब्दुलबारी सिद्दीकी अथवा रघुवंश प्रसाद सिंह अथवा किसी और को मुख्यमंत्री बनवाकर देश को ये संदेश दे सकते थे की परिवार से बड़ा उनका पार्टी है और पार्टी से बड़ा उनका राज्य एवं देश है। लेकिन नहीं, 25 जुलाई 1997 को जब राबड़ी देवी राज्य की मुख्यमंत्री बनी, तब उसी समय लालू जी ने इस बात को साफ कर दिया था की सबसे बड़ा उनका परिवार ही है और वह चाहे कोई हो, पार्टी में कितनी भी ईमानदारी से काम करे, पार्टी में उनका स्थान लालू परिवार के बाद ही होगा। तेजप्रताप यादव समय- समय पर पार्टी विरोधी गतिविधियां करते रहते हैं, क्या आपको नहीं लगता है की तेजप्रताप एक बदले अगर वह चेहरा अन्य किसी नेता का होता तो कब का उसे बाहर आ रास्ता दिखा दिया गया होता। हमें लगता है की अब समय खत्म हो गया है लालू जी। वर्षों पूर्व आपने जो बीज बोया था, केवल आप ही नहीं, इस तथाकथिक अच्छे दिन वाली सरकार में गरीबी- भुखमरी- महंगाई एवं बोरेजगारी से त्रस्त, राज्य की जनता आज उसकी फसल काट रही है। अगर आप पार्टी एवं परिवार दोनों को, रेल की दो पटरियों की तरह समानान्तर रूप से चलाते तो इस “सुशासन” एवं “सबका साथ- सबका विकास- सबका विश्वास” का दंभ भरनेवाली पार्टियों के अलावे भी राज्य के नागरिकों के पास एक अन्य विकल्प होता। उपरोक्त वक्तव्य समाजवादी विचारधारा के पत्रकार संजय कुमार, समस्तीपुर द्वारा उल्लेखित विचार है ।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित।

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