उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 जीते कोई भी,हारेंगे मोदी ही

 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022

जीते कोई भी,हारेंगे मोदी ही

जनक्रांति कार्यालय से संवाद सूत्र की रिपोर्ट


भाजपा की वर्तमान राजनीतिक मजबूरी है कि अमित शाह योगी आदित्यनाथ को चुनावी चेहरा बता रहे हैं और नरेंद्र मोदी UP+YOGI उपयोगी का जुमला गढ़ रहे हैं :पंकज कुमार श्रीवास्तव

पटना, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 02 जनवरी, 2022)। पिछली तिमाही यानी कि अक्टूबर से दिसंबर के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों की ताबड़तोड़ लगभग डेढ़ दर्जन दौड़े किए हैं और अरबों रुपए की योजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन किए हैं।नरेंद्र मोदी पिछले साढ़े 07 साल से प्रधानमंत्री हैं और पिछले 05 साल से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है।जाहिर सी बात है इन योजनाओं के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गंभीर होते तो पहले ही इन योजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन हो चुके होते।लेकिन,न तो ये लोग गंभीर थे और न इन शिलान्यास और उद्घाटनों को आम जनता ही गंभीरता से ले रही है।

सभी जानते हैं कि ये चुनावी वादे हैं, झूठे जुमले हैं,जिन्हें कम से कम वर्तमान सरकार तो इन्हें पूरा कर सकने से रही।
भाजपा की वर्तमान राजनीतिक मजबूरी है कि अमित शाह योगी आदित्यनाथ को चुनावी चेहरा बता रहे हैं और नरेंद्र मोदी UP+YOGI उपयोगी का जुमला गढ़ रहे हैं।लेकिन,दोनों की मंशा यही है कि भाजपा चुनाव भले जीत जाए लेकिन योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री न बनने पाएं।मोदी-शाह तो योगी आदित्यनाथ को 2017 में भी मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहते थे,इन दोनों की पसंद मनोज कुमार सिन्हा थे।लेकिन,आरएसएस ने अपना 'वीटो'लगा दिया।आरएसएस योगी आदित्यनाथ के रूप में मोदी के बाद का सेकंड लाइन ऑफ लीडरशिप तैयार कर रहा था।मुख्यमंत्री बनाने के बाद योगी आदित्यनाथ को गैर-हिंदी प्रदेशों में भी हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय के रूप में चुनाव अभियान में प्रस्तुत किया गया।आरएसएस की पहल योगी आदित्यनाथ में भावी प्रधानमंत्री के तौर पर महत्वाकांक्षा जगाने के लिए पर्याप्त थी।

सोशल मीडिया पर'मोदी के बाद योगी'अभियान चला,देश की कौन कहे विदेशी मीडिया में भी एडवर्टोरियल के माध्यम से योगी आदित्यनाथ के नाम का डंका बजाने की कोशिश की गई।मोदी- शाह जानते हैं कि अगर पिछली बार की तरह भाजपा उत्तर प्रदेश में बहुमत में आई तो योगी आदित्यनाथ इसका श्रेय लूटेंगे और भाजपा के भीतर मोदी के खिलाफ अविश्वास का माहौल पैदा करेंगे। ऐसे में,अभी मोदी के खिलाफ जो anti- incumbency दिखाई दे रही है,वह तेज हो जाएगी। भाजपा के भीतर जो लोग आरएसएस की शाखाओं में शिक्षित, प्रशिक्षित और दीक्षित नहीं है वह मोदी से विमुख हो जाएंगे।ऐसे में,मोदी 2024 तक का अपना कार्यकाल भले पूरी कर लें, 2024 में योगी आदित्यनाथ भाजपा के भीतर मोदी के प्रतिद्वंदी के रूप में उभरेंगे और मोदी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में प्रधानमंत्री पद के लिए अमित शाह की दावेदारी एकबारगी समाप्त हो जाएगी।
मोदी और शाह पिछले 01 साल से योगी आदित्यनाथ को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं।

2021 की शुरुआत में ही अरविंद कुमार शर्मा,वरिष्ठ आईएएस को ऐच्छिक सेवानिवृत्ति दिलवाकर उत्तरप्रदेश का एमएलसी बनाया गया।चर्चा यहां तक थी कि उन्हें उत्तर प्रदेश में उप-मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।लेकिन, योगीजी ने उन्हें कैबिनेट मंत्री भी नहीं बनाया।अब, वह भाजपा प्रदेश इकाई के 17वें महामंत्री हैं। योगी आदित्यनाथ के महत्वाकांक्षा को नियंत्रित करने के लिए केशव प्रसाद मौर्य की महत्वाकांक्षा को हवा दी गई और अजय मिश्र टेनी को केंद्रीय गृहराज्य मंत्री बनाया गया।योगी आदित्यनाथ के अहम पर कुठाराघात करने के लिए पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के उद्घाटन के अवसर पर उन्हें मोदीजी के कार के पीछे पैदल चलने के लिए मजबूर किया गया।उत्तरप्रदेश सरकार के विज्ञापनों में भी सिर्फ मोदीजी का चेहरा दिखाई दिया और योगी आदित्यनाथ को किनारे लगा दिया गया।
योगी आदित्यनाथ ने मोदी-शाह की नीयत को ससमय भांप लिया था और अयोध्या में श्रीराममंदिर निर्माण के संदर्भ में भूमि क्रय में जो घोटाले हुए हैं,उनके दस्तावेजी साक्ष्य जिस प्रकार सामने आए हैं,उसमें योगी आदित्यनाथ का हाथ बताया जाता है। 03अक्टूबर,2021 को अजय मिश्र टेनी के क्षेत्र में केशव प्रसाद मौर्य दंगल का उद्घाटन करने वाले थे और यह योगी आदित्यनाथ के दो प्रतिद्वन्दियों अजय मिश्र टेनी और केशव प्रसाद मौर्य का संयुक्त उपक्रम था।लखीमपुर-खीरी कांड में राज्य पुलिस ने जो तत्परता दिखाई है,उसके पीछे भी योगी आदित्यनाथ का हाथ बताया जाता है,यह मोदी-शाह के दुलरूआ अजय मिश्र टेनी को ठिकाने लगाने के लिए योगी आदित्यनाथ के प्रयास के रूप में परिभाषित किया जा रहा है।
एक तरफ मोदी-शाह और दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ का यह द्वन्द्व तब और भी उभरकर सामने आएगा,जब डेढ़ सौ से ज्यादा विधायकों के टिकट काटे जाएंगे और या फिर योगी आदित्यनाथ के पसंद के लोगों को टिकट नहीं दिए जाएंगे।योगी अपने मूल संगठन हिंदू रक्षा वाहिनी को जीवंत जागृत रखने की कोशिश कर रहे हैं और टिकट वितरण में अगर उनकी नहीं चली तो भाजपा का दामन छोड़कर वह हिंदू रक्षा वाहिनी के मंच से भाजपा की चुनावी संभावना को सीमित कर देंगे।
दूसरी तरफ,विरोधी कैंप में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव हों या कांग्रेस की प्रियंका गांधी अपनी रैलियों में दोनों जबरदस्त भीड़ खींच रहे हैं, जबकि मोदी शाह नड्डा की रैलियों में कुर्सियां खाली रह जा रही हैं।नोटबंदी,जीएसटी और कोरोना की लहर में कुव्यवस्था और कुप्रबंध ऐसे विषय हैं,जिसे उत्तरप्रदेश की जनता भूल नहीं सकती।मंहगाई, बेरोजगारी और उत्तर प्रदेश के बिगड़ते सामाजिक- आर्थिक-राजनैतिक हालात भाजपा की चुनावी संभावनाओं को लगातार कम कर रहे हैं। 01वर्ष तक चले किसान आंदोलन ने भाजपा की राजनीतिक जमीन खिसका दी है।नीति आयोग और दूसरी एजेंसियां जो आंकड़े प्रस्तुत कर रही हैं,वह उत्तरप्रदेश की जमीनी हकीकत बयां कर रही हैं और भाजपा को आश्वस्त नहीं कर पा रही है।
कुल मिलाजुला कर उत्तरप्रदेश का चुनावी परिदृश्य यही है कि भाजपा की जीतने की संभावना बहुत ही कम है और भाजपा जीत भी जाए तो योगी भाजपा के भीतर नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंदी के रूप में उभरेंगे और 2024में प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी की संभावना को कम करेंगे।यानि कि भाजपा हार विजय तब तो सत्ता उसे नहीं ही मिलेगी,लेकिन अगर जीत भी जाए तो यह मोदी को आश्वस्त नहीं कर पाएगी और मोदी के लिए यह भी हार का सबब होगा।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा पंकज कुमार श्रीवास्तव की रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित।

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