जो बहुसंख्यक हित के साथ सर्व हित हेतु कार्य करेगा, वही देश में राज करेगा - अजीत सिन्हा

 जो बहुसंख्यक हित के साथ सर्व हित हेतु कार्य करेगा, वही देश में राज करेगा - अजीत सिन्हा


जनक्रांति कार्यालय संवाददाता


बहुसंख्यक समाज में केवल 25 प्रतिशत लोगों में जागृति आने से ही यह बदलाव दिखना लाज़मी है : अजीत सिन्हा

राँची,झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 02 जनवरी, 2022)। हमारा देश बदल रहा है और इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं है, क्योंकि आज धर्म विशेष के प्रति तुष्टीकरण की नीति सबसे पिछले पायदान पर हो गई है । जबकि इसी नीति के बदौलत आज की नाम मात्र की प्रमुख विपक्षी दल काँग्रेस ने सत्तर से अधिक सालों तक कतिपय आजादी के बाद राज किया और यह उनके लिए तभी सम्भव हो पाया जब बहुसंख्यक सनातनी समाज में जातिवादी प्रथा ऊंचे पायदान पर थी अर्थात् धर्म विशेष को लुभाने हेतु एवं उन्हें खुश रखने हेतु तुष्टीकरण किया जाता था ।

काँग्रेस पार्टी के द्वारा और सनातनियों का जात - पात के नाम पर एकता के तोड़ का लाभ लेकर सत्ता पर काबिज होते थे लेकिन अब बहुसंख्यक समाज में केवल 25 प्रतिशत लोगों में जागृति आने से ही यह बदलाव दिखना लाज़मी है और जिसका लाभ वर्तमान शासक भाजपा को अवश्य ही मिल रहा है और देश के शीर्ष सिंहासन के साथ देश के कई राज्यों में उनकी सत्ता स्थापित हो चुकी है। जिसके परिणाम स्वरूप भाजपा राम मंदिर, तीन तलाक, धारा 370 जैसे मुद्दों को लगभग हल कर चुकी है। अब देश में मुस्लिम तुष्टीकरण की जगह बहुसंख्यक तुष्टीकरण भी अपनी पैर पसार चुकी है।


यहां पर यह भी समझने की बात है कि जब देश के बंटवारे के मूल में जब धर्म थी तो एक इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान की नींव तो रख दी गई लेकिन शेष भारत को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया गया ..? जिसका मलाल एवं दुःख बहुसंख्यक आबादी को अवश्य ही है। क्योंकि इसी गलती की वज़ह से आज एक और नये मुगलिस्तान बनाने की तैयारी हो रही है और इसकी पटकथा में भारत के वैसे राज्य तो है ही जो साथ दे रहे हैं चाहे वह पश्चिम बंगाल हो या केरल। और यह भी ठीक है कि भारत के वर्तमान शासक की दूरदर्शिता की वज़ह से जाते - जाते कश्मीर बची है और इसके लिए वे अवश्य ही साधुवाद के पात्र हैं।


लेकिन यहां गौर करने वाली बात है कि भारतीय संविधान वर्ग विशेष की जगह भारत के सभी नागरिकों के समान अधिकार की बात करते हैं चाहे वे किसी भी जाति एवं धर्म विशेष के हों। लेकिन कतिपय आजादी के समय हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं होने की वज़ह से आज खालिस्तान की मांग भी जोर पकड़ रही है जिसके लिए खालिस्तानी आततायी समय - समय पर अपने आतंकी कारवाईयों  द्वारा उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं चाहे पंजाब में हाल फिलहाल की बम विस्फोट की घटना हो या अमेरिका एवं कनाडा में खालिस्तान समर्थन में लगने वाले नारों की ।


कहने का तात्पर्य यह है कि आज का बचा भारत भी धर्म के आधार पर एक बार पुनः खंड - खंड होने को तैयार है और अब चुनौती यह है कि बचे भारत को खण्डित होने से कैसे बचाया जाए..?
धर्म विशेष की वैश्विक इस्लामीकरण की नीति पर कभी भी विराम नहीं लगने वाली है क्योंकि उनकी सोंच एवं खून में ये समाया हुआ है कि येन - केन - प्रकारेण पूरे विश्व में इस्लामिक राज्य की स्थापना हो और सभी जगह शरियत के हिसाब से व्यवस्था चले। इसलिये इसके तोड़ में हिंदू राष्ट्र की स्थापना हेतु आज की तिथि में बहुत से लोग प्रयासरत हैं और कतिपय आजादी के समय हुई गलती को सुधारना चाहते हैं इसलिए धर्म युद्ध की तैयारी भी शुरू हो चुकी है ताकि दो और मुगलिस्तान एवं खालिस्तान के उनके देखे सपने पूरे न हों सके। अल्पसंख्यक धर्म विशेष का एक वर्ग मेरी समझ से 80 प्रतिशत इसी मानसिकता के हैं जबकि सिख समुदाय में 20 प्रतिशत से ज्यादा लोग खालिस्तान के समर्थक नहीं हैं ये मेरी आकलन है।
हमने अखण्ड भारत के अंतर्गत अभी तक इंडोनेशिया, कंबोडिया, म्यामांर, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, तिब्बत समेत कई देशों को खो पहले ही खो चुके हैं लेकिन अब और विखण्डन हेतु निश्चित रूप से भारतीय मूल मानस बिलकुल तैयार नहीं है और आज देश के सामने देशभक्त राजनीतिज्ञों के लिए दो चुनौती अवश्य ही है पहली देश को विखण्डन से बचाना तथा दूसरी खोये देशों को अपनी नीतियों के आगे नतमस्तक कर अखण्ड भारत के सपनों को पूर्ण करना? लेकिन यह होगा कैसे? यह सभी के लिए मंथन, मनन कर एक फूल प्रूफ योजना बनाकर आगे बढ़ने की जरूरत है।
भारत के संस्कार के मूल में सर्व धर्म समभाव एवं बसुधैव कुटुम्बकम् के भाव हमेशा से समाहित रही है और खास कर एक धर्म विशेष को छोड़कर कमोबेश सभी लोग ऐसा केवल सोंचते ही नहीं हैं अपितु ऐसा उनके जीवन के परिवेश में बहुतायत के रूप में दिखाई देती है और अगर ऐसा नहीं होता तो भाईचारा जिहाद के आड़ में लव जिहाद सहित अन्य जिहाद नहीं फलते-फूलते।
अब आते हैं उस विश्लेषण पर जहां मैंने कहा है कि जो बहुसंख्यक हित सहित सर्व हित हेतु कार्य करेगा वही देश में राज करेगा। जी हां मेरी नज़रों में यह बिल्कुल सही बात है क्योंकि मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति से भारत के सर्व समाज अच्छी तरीके से परिचित हो गये और निश्चित रूप से इसके प्रतिफल के रूप में काँग्रेस ने अपनी सत्ता खो दी है और अब काँग्रेस को भी यह साबित करना पड रहा है कि वे हिंदू एवं हिन्दुत्व के विरोधी नहीं हैं। कहते हैं न कि दूध का जला मट्ठा लोग फूँक - फूँक कर पीते हैं इसलिए बहुसंख्यक समाज को काँग्रेस की कथनी और करनी पर विश्वास नहीं हो रहा है इसलिये हिन्दुओं के वोटों का ध्रुवीकरण इस पार्टी के पक्ष में मेरी समझ आगामी विधानसभा के चुनावों में मेरी समझ से कदापि नहीं होने वाली है हालांकि चुनाव के उपरांत उसके परिणाम ही मेरी बातों पर मुहर लगा सकेगी।
यदि धर्म के आधार पर वोटों की ध्रुवीकरण होती है तो निश्चित रूप से ऐसे वोटों की लाभदार भाजपा एवं ओवैसी की पार्टी ए. आई. आई. एम. होगी हालाँकि यदि वर्ग विशेष के अल्पसंख्यक समाज ने थोड़ी भी बुद्धिमानी दिखाई तो ये वोट अखिलेश यादव के नेतृत्व में चलने वाली समाजवादी पार्टी एवं मायावती के नेतृत्व में चलने वाली बहुजन समाज पार्टी को जा सकती है और कुछ ओवैसी की पार्टी को एवं कुछ नई पार्टियों को भी और साथ में कुछ भाजपा को भी क्योंकि तीन तलाक बिल आने से कुछ मुस्लिम समुदाय की महिलाये निश्चित रूप से खुश हैं और ये साबित करेगी कि भाजपा मुस्लिमों के वोट बैंक में सेंध लगा चुकी है कहने का तात्पर्य यह है कि लीक से हटकर इस बार वर्ग विशेष अल्पसंख्यकों के वोट बटेंगें।
अब रही बात बहुसंख्यक हिन्दू समाज की तो इनके वोट हमेशा से बंटे हैं लेकिन इतना निश्चित है इस समाज के पच्चीस से तीस प्रतिशत वोट भाजपा को एक मुश्त मिलेंगे ही क्योंकि भाजपा ने ऐसी पासा हिन्दुत्व जागरण की फेंकी है कि इस समाज के हिन्दुत्व जागृति से जागृत लोग एक विशेष पार्टी के नेतृत्व में अपनी मतदान करेगी ही, ऐसी मेरी आकलन है।
आगे प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं कई सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, मीडिया एवं फाउंडेशन जैसे संस्थानों से जुड़े अजीत सिन्हा ने कहा कि इस बार के विधानसभा चुनावों में खासकर उत्तर प्रदेश में कायस्थों, ब्राह्मणों, भूमिहार के साथ कुछ राजपूतों के वोट निश्चित रूप से कई पार्टियों में  बंटेगें क्योंकि हिन्दुओं में जनरल समुदाय जातीय आरक्षण से खफा है और खासकर कायस्थ समुदाय को भाजपा की उम्मीदवारी नहीं मिलने से यह समाज पूरी तरह से खफा है इसलिए कायस्थों की पचहत्तर प्रतिशत वोट निश्चित रूप से नई पार्टियों में राष्ट्रवादी विकास पार्टी सहित सुभाषवादी समाजवादी पार्टी को जाएगी क्योंकि इन दोनों पार्टियों के नेतृत्वकर्ता इसी समाज से हैं साथ में ये पार्टियां राष्ट्रवादी सोंच की है जिसके अंतर्गत इन्होंने कायस्थों सहित ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, यादव, दलित, अति दलित, अल्पसंख्यकों सहित बिना जाति एवं धर्म देखे टिकट देने का मन बना चुकी है इसलिए बहुसंख्यक समाज के पचहत्तर प्रतिशत वोटों में इनकी सेंधमारी निश्चित है।
लेकिन इतनी तो निश्चित है कि अब उल्टी गंगा बहने लगी है जहां लोग मुस्लिमों को खुश कर अपनी राजनीति की रोटी सेंकते थे वहीं अब बहुसंख्यक हिन्दू समाज सहित बिना सभी का ध्यान रखे सत्ता पर काबिज नहीं हुई जा सकती है। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार सहित कई मुद्दे केवल सत्तासीन भाजपा को ही परेशान कर रही हैं अपितु भ्रष्टाचार के मामले भाजपा के साथ सपा, काँग्रेस, बसपा समेत सभी पुरानी पार्टियाँ हमाम में नंगे हैं जिसका प्रभाव निश्चित रूप से वोटों के बंटवारे में अवश्य ही दिखाई पड़ेगी। अंत में अजीत सिन्हा ने कहा कि राष्ट्र  में चौथी शक्ति के उद्भव हेतु निश्चित रूप से जनता - जनार्दन को नई पार्टियों के पक्ष में वोट करनी चाहिए।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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