कोरोना - ओमीक्रोन का हमला : रैली, मैराथन एवं क्रुज का दु:खद जलवा - अजीत सिन्हा

 कोरोना - ओमीक्रोन का हमला : रैली, मैराथन एवं क्रुज का दु:खद जलवा - अजीत सिन्हा


जनक्रांति कार्यालय से सम्वाद सूत्र की रिपोर्ट


क्या लाशों पर चढ़कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने की उनकी मंशा है और देश के मेडिकल माफिया को कितनी पोषण करना चाहती है..?:अजीत सिन्हा

राँची/झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 04 जनवरी, 2022)।  देश में बढ़ते हुये कोरोना - ओमीक्रोन के बढ़े हुए केसेज से यह समझने के लिए काफी है कि तीसरी लहर की दस्तक हो चुकी है और यह पारावान चढ़ने की ओर अग्रसर है और लोगों की जिंदगी हासिये पर है और इसमें देश के शीर्ष पार्टियों की नेतृत्व चुनावी रैली, मैराथन दौड़ एवं नये साल पर मुंबई टू गोवा क्रूज की सवारी पार्टी कर आखिर किस हद तक संवेदनहीनता की परिचय दे देश को बीमारियों की ओर झोंककर आखिर राज्य एवं देश की सरकारें क्या हासिल करना चाहती हैं..?

क्या लाशों पर चढ़कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने की उनकी मंशा है और देश के मेडिकल माफिया को कितनी पोषण करना चाहती है..? जब से देश में चुनावी रैलियां या विकास हेतु राज्य के लोगों को नई योजनाओं का उद्घाटन के लिए रैली आयोजित की जा रही है तब से उसमें न कोरोना के नियमों का ही पालन हो रहा है और देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी काँग्रेस द्वारा लड़की हूं लड़ सकती हूं की भावना को हवा देते हुए उत्तर प्रदेश के बरेली में ल़डकियों की मैराथन दौड़ आयोजित की गई जिसमें कईयों की जान जाते - जाते बची है और कुछ घायल अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं तथा साथ में मुंबई के क्रूज में 66 लोगों के कोरोना से संक्रमित होने की सूचना मिली है जो यह दर्शाती है कि अंधी दौड़ - रैली एवं नये साल सेलिब्रेशेन के नाम पर लोग किस तरह से बीमारियों को गले लगा रहे हैं..?

अभी के समय में लोगों को सुरक्षित रखने या रहने की जरूरत है जबकि रैली, मैराथन एवं पार्टी कर लोग अपनी जान जोखिम में क्यों डाल रहे हैं और इसमें कुछेक राजनीतिक पार्टियां इसका हिस्सा क्यों बन रही हैं..? जबकि सब को पता है कि कोरोना में लाखों लोग काल के गाल में समा गये हैं और उसके बाद डेल्टा की कहर अब ओमीक्रोन की, जिससे यह समझने के लिए काफी है कि खतरा अभी टली नहीं है फिर सत्तासीन सरकारो के साथ विपक्षी दल इसके बढावा मे भागीदार क्यों बन रहे हैं..?
याद करें जब इस दुर्दांत बीमारी के वज़ह से न जाने कितनों ने अपने घरों के चिराग खोये हैं और न जाने कितनों ने अपने माता - पिता एवं भाई बहनों को खोया है और न जाने कितनों की रोजी - रोजगार छूटी। न जाने कितने अर्श से फर्श पर और कुछेक फर्श से अर्श की ओर भी बढ़े।

कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली समेत कई राज्यों में बढ़ रहे मामलों से यह समझने के लिए काफी है कि फिर मौत की रफ्तार तेज होने वाली है फिर भी लोग सरकारी, गैर सरकारी, निजी आयोजनों का हिस्सा क्यों बन रहे हैं..?

इस पर मनन कर मेरी समझ से लोगों को सुरक्षित रखने या रहने की जरूरत है क्योंकि देश में अभी तक न ही पूर्ण टीकाकरण ही हुई है और इस बात की कोई गारंटी भी नहीं है कि टीके लगे व्यक्ति दुबारा इस दुर्दांत बीमारी का शिकार नहीं होंगे।

आत्मरक्षा, आत्मसुरक्षा व्यक्ति का निजी अधिकार है लेकिन आम सुरक्षा सरकारों की जिम्मेदारी। इसलिए व्यक्ति भी अपनी जिम्मेदारियों को समझे और साथ में सरकारें भी ताकि जल्द से जल्द ऐसी बीमारियों से निजात मिले। इसलिये कोई भी किसी के बहकावे में आकर अपनी निजी जिंदगी को दाव पर न लगायें और रैली, मैराथन एवं निजी, सामाजिक, राजनीतिक एवं सामुहिक कार्यक्रमों से परहेज करें।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय से संवाद सूत्र की रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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