थाने में आऐ गरीब व नि:सहाय फरियादियों के साथ अभद्रता से पेश आते हैं पुलिस पदाधिकारी

 थाने में आऐ गरीब व नि:सहाय फरियादियों के साथ अभद्रता से पेश आते हैं पुलिस पदाधिकारी

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट 

पुलिस के आतंक से गांव के लोगों का जीना हुआ मुहाल

पटना, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 22 मार्च, 2022 ) । आइए आज आपको एक सच्चाई से रूबरू कराते हैं । एक तरफ सरकार पुलिसकर्मियों को नसीहत देती हैं की मित्रवत और जनता की सेवक की तरह फरियादियों से बात की जाऐ, लेकिन जिला के पुलिस थाने में फरियादी जब फरियाद लेकर पहुंचते है या पुलिस छानबीन करने जाती है तो गांव के गरीब -गंवार लोगों की इन जालिम पुलिस वालों की फटकार सुननी पड़ती है। जी हां मैं अपने ही राज्य के उन पुलिस वालों की बात कर रहा हूं जो अपने आप को जनता की सेवक के बदले भगवान समझ बैठे हैं।

  वर्तमान समय में यह एक फैशन सा बन गया है। फिल्ड सर्वे से पता चलता है कि जब भी कोई गरीब व नि: सहाय फरियादी किसी भी थाने में अपना फरियाद लेकर थाना में जाते हैं तो वहां पर मौजूद पुलिस फरियादियों के दयनीय अवस्था को देखकर अशोभनीय शब्द और कभी-कभी अभद्र शब्दों का भी प्रयोग करते हुए फरियादियों से बात करते हैं , डर के मारे बेचारे फरियादी जो दो शब्द बोलना भी चाहते हैं उसका हक्का-बक्का गुम सा हो जाता है क्योंकि उन्हें साहब के सामने उसकी बोलने की औकात है ही नहीं अगर थोड़ा सा भी विरोध किया तो फरियादी यह समझते हैं कि मेरा काम नहीं होगा , इसलिए उनके अभद्रता को सहते हुए भी उनकी भद्दी से भद्दी गालियां को सुनते हुए चुपचाप दुबके रहते हैं ।

ऐसी वारदात हमारे जिले में ही नहीं बल्कि भारत के पूरे राज्यों के विभिन्न थानों में भी देखें गये हैं । कई जगहों पर हमें देखने को मिला हैं कि कोई आदमी अपना फरियाद लेकर जब थाने में पहुंचता है तो वहां मौजूद पुलिस पदाधिकारी उनकी बातें सुनने के बजाय बोलते हैं की तुम इधर क्यों आ गया..? कौन हो तुम..? क्या काम है तुमको..? देखता नहीं है क्या कि हमलोग अभी किसी अर्जेंट कामों व्यस्त हैं भागो उधर ! जाओ वहां उधर बैठे !  हमलोग जब फुर्सत में होंगे तो तुमको बुला लेंगे सहित अन्य कभी-कभी बेवजह उन्हें उल्टी-सीधी गालियां भी दे बैठते हैं और कहते हैं कि जाओ भागो यहां से नहीं तो हम तुमको भीतर कर देंगें । इतना सुनने के बाद , बेसहारा व नि:सहाय फरियादियों का क्या हाल होता होगा यह आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं , बेचारे डर के मारे जैसे वह लोग कहते हैं वैसे सुन लेते हैं ।आखिर ऐसा क्यों ... ? ।

कभी - कभी ऐसा भी देखा गया है कि जब पुलिस वालों को अपने ही वरीय पुलिस पदाधिकारी से डांट खानी पड़ती है तो वरीय पदाधिकारी को तो वो कुछ कह नहीं सकते हैं तो बेचारा आए हुए फरियादी पर ही अपना सारा गुस्सा उतारने लगते हैं । वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों को जो पुलिस पदाधिकारी के करीबी होते हैं उनलोगों को पुलिस पदाधिकारी लोग चाय-नाश्ता तथा पानी सब कुछ कराते हैं , क्योंकि उन्हीं के सहयोग से उनका भी भरण पोषण होता है । मैं ये नहीं कहता कि सभी पुलिस पदाधिकारी एक जैसे ही होते हैं , कुछ अच्छे लोग भी हैं जिन्हें इन बातों बखूबी एहसास होता है कि कमजोर व गरीब आम लोगों का भी काम मुझे ही करना है और यह भी एक इंसान ही है । कुछ पुलिस पदाधिकारी ऐसे लोगों से बिल्कुल भिन्न होते हैं और वैसे पदाधिकारी फरियादियों की सुनते भी हैं , लेकिन अधिकतर पदाधिकारी या कर्मी फरियादियों पर पुलिसिया रौब ही दिखाते नजर आते हैं ।

मेरा पर्सनल ओपिनियन है कि पुलिस कप्तान को इन बातों पर थोड़ी गहराई से सोचना चाहिए।और इस तरह के पदाधिकारियों और कर्मियों पर थोड़ी सख्ती तो बरतनी ही चाहिए ,  इनदिनों पुलिस कर्मियों द्वारा शराब जांच अभियान के नाम पर जनता के साथ बेतरतीब तरीकें से अन्याय और जुल्म किया जा रहा है । पुलिस के मुखबिरों को सब मालूम रहता है की शराब कहाँ- कहाँ अवैधानिक बिक रहा है। लेकिन असली शराब माफियाओं पर नकेल कसने के बजाय छोटे माफियाओं पर नकेल कस अपना उल्लू सीधा कर सरकार तक मैसेज भेजते रहते है।

वहीं सरकार का भी कहना है की जिस थानाध्यक्ष के क्षेत्र में शराब की खेप पकड़ाऐगा उस क्षेत्र के थानाध्यक्ष होंगे निलंबित लेकिन होता कुछ नहीं है। शराब माफिया और पुलिस की जुगड़बंदी बेधड़क जारी है। वैसे वास्तविकता जो भी है उन्हीं पर से थोड़ी पर्दा घिसका कर आपलोगों को आगाह किया है । यदि उपरोक्त बातों में थोड़ी भी सच्चाई है तो इनमें सुधार करने की जरूरत है। कहने को तो बहुत कुछ हैं लेकिन वैसे यह मेरा व्यक्तिगत ही जनता विचार द्वारा दी गई राय है ।

 

जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित ।

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