शनिवार से चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से वर्ष के प्रथम नवरात्र बसंत नवरात्र प्रारंभ, बसंत नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है: पंकज झा शास्त्री

 शनिवार से चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से वर्ष के प्रथम नवरात्र बसंत नवरात्र प्रारंभ, बसंत नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है: पंकज झा शास्त्री


जनक्रान्ति कार्यालय रिपोर्ट


सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं।

अध्यात्म डेस्क/मधुबनी, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 03 अप्रैल, 2022 ) । हिंदू नववर्ष विक्रम संवत् 2079 के प्रारंभ होने के साथ ही 2 अप्रैल 2022 शनिवार से चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से वर्ष के प्रथम नवरात्र बसंत नवरात्र प्रारंभ हो चुकी है। शहर के काली मंदिर परिसर, सूरी स्कूल, चकदह एवं आस पास के क्षेत्रों में बसंत नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है।

काली मंदिर परिसर मधुबनी स्थित मां श्यामा चैती नव दुर्गा मंदिर में पंडित बालकृष्ण झा, पंडित ओम प्रकाश झा, पंडित पंकज झा शास्त्री, पंडित सुभाष झा, जीबू ठाकुर, संतोष चौधरी एवं अन्य पंडितों ने वेदों उच्चारण के कलश स्थापना किए।
बसंत नवरात्र को लेकर पूरा मधुबनी शहर भक्तिमय बना हुआ है।


मां श्यामा चैती नव दुर्गा मंदिर बसंत नवरात्र को लेकर भक्तों में बहुत उत्साह देखी जा रही है। लोग आज से निष्ठा पूर्वक भगवती दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा अर्चना में व्यस्त होंगे।  नवरात्र के प्रथम दिन मां भगवती के नौ स्वरूपों में से प्रथम शैलपुत्री की पूजा होती है।
कई शक्ति स्थलों में भी बसंत नवरात्र को लेकर रौनक देखी जा रही है।


वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बाँधकर धार्मिक आस्था में ओतप्रोत कर देना हिन्दू धर्म की विशेषता है। हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं।

उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है। सहर के जाने माने पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया समुद्र मंथन की कथा बहुत प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का स्रोत है।
देवी अर्थात्‌ रचनात्मक और दानवी अर्थात्‌ ध्वंसात्मक शक्तियाँ इस समुद्र का मंथन मंदराचल शिखर पर्वत की मथानी और वासुकी नाग की रस्सी बनाकर करती हैं। पहली दृष्टि में यह एक कपोल कल्पना अथवा गल्पकथा लगती है, क्योंकि पुराणों में अधिकांश ऐसी ही कथाएँ हैं, किन्तु उनका मर्म बहुत गहरा है। जीवन का अमृत तभी प्राप्त होता है, जब हम विषपान की शक्ति और सूझबूझ रखते हैं। यही श्रेष्ठ विचार इस कथा में पिरोया हुआ है, जिसे हम मंगल कलश द्वारा बार-बार पढ़ते हैं।


कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं।


सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्ना करने के लिए बैटरी या कोषा होती है, वैसे ही मंगल कलश ब्रह्माण्डीय ऊर्जा संकेंद्रित कर उसे बहुगुणित कर आसपास विकिरित करने वाली एकीकृत कोषा है, जो वातावरण को दिव्य बनाती है।


मां श्यामा चैती पूजा समिति के अध्यक्ष कृष्ण मोहन जी ने बताया कि 1997 ईसवी से लगातार हर वर्ष काली मंदिर परिसर, मधुबनी में  यह पूजा हो रही है, मां श्यामा चैती दुर्गा पूजा समिति के व्यवस्थापक कैलाश शाह, कार्यालय प्रभारी दीपक दत्ता, महामंत्री प्रभु नंदन श्रीवास्तव, पंडाल प्रभारी अशोक श्रीवास्तव , उद्घोषक राजू कुमार राज एवं अन्य सदस्य अपने तन मन से सहयोग कर रहे है इस पूजा में श्रद्धालु भक्तो का भी अहम योगदान है।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय से पंकज झा शास्त्री की ज्योतिष विचार प्रकाशित व प्रसारित। 

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