जनता है बेहाल

जनता है बेहाल


                           रचनाकार : प्रमोद कुमार सिन्हा

जनता हैं बेहाल,
राजनेता है खुशहाल
                          बेहाल जनता

ऊंच नीच अमीर गरीब में बंटा समाज
इसलिए दबाती रही राजनेता आवाज,
अमीर अबतक अमीर बन सोते रहे हैं
सियासी चाल में फंस गरीब रोते रहे हैं,
चाल सियासत का अति महीन मंदा
अबतक गरीबों के गले लगता है फंदा,
न्याय प्रक्रिया जटिल और उबाऊ होता
बड़े बड़े लोगों को सियासत छाँव होता,
बेल पाकड़ करते हैँ फिर वही मनमानी
वकील धुरंधर कानून उनका है जुबानी,
हर हाल में हक़ गरीबों का मारा जाता
बिना कमीसन कहीं नहीं है टीक पाता,
हर विभाग भ्रष्टाचार जर्रे जर्रे में समाया
अछूता नहीं सब जगह है पाऊं जमाया,
राजनितिक दल इसी नारे पर जीतते
पाँच बरस इसी तरह समय हैं बीतते,
आजतक स्वर्णिम राम राज्य नहीं आया
राम राज्य लाने कह सभी पाऊं जमाया,
महात्मा गाँधी का सपना अधूरा रहेगा
सौगंध खाकर सपना पुरा नहीं करेगा,
लोकनायक का सपना भी अधूरा रहा
उनके चेलों ने ही ना कभी पुरा किया
भारत का हाल बड़ा ही बेज़ार रहा है
जजर्र समाज का यही हाल हो रहा है।
ऊपर बैठा एक से बढ़कर एक धुरंधर
उसका मार हमेशा होता है छूमंतर ।।
आजादी के बाद से देश का यही हाल
त्राहिमाम करता रहता जनता है बेहाल।।
जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा रचनाकार प्रमोद कुमार सिन्हा की रचना कार्यालय से प्रकाशित व प्रसारित।

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