पांच लोगों की आत्महत्या का मामला में आत्महत्या का जिम्मेदार आखिर में कौन..???: डॉ० मिथिलेश

 पांच लोगों की आत्महत्या का मामला में आत्महत्या का जिम्मेदार आखिर में कौन..???: डॉ० मिथिलेश


मुफ्त सरकारी योजनाओं और हर हाथ को काम पर सवाल खड़े करता है..??

विद्यापति कि निर्वाणी गंगा के गंगाजल से भी यह कलंक कभी धुलेगा..??


आर्थिक आधार पर आरक्षण ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकेगी : डॉ० मिथिलेश कुमार,अध्यक्ष, चेतना सामाजिक संस्था

समस्तीपुर, बिहार ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 08 जून,2022)। समस्तीपुर जिले के विद्यापति नगर प्रखण्ड एवं थाना क्षेत्र के मऊ धनेशपुर गाँव में गरीबी और कर्ज़ से तंग आकर एक ही समय एक ही परिवार के 05 सदस्यों ने फाँसी लगा कर आत्महत्या कर लिया।

उनके नाम हैं:-मनोज झा (42 वर्ष), पत्नी सुन्दरमणि देवी (38 वर्ष), माँ सीता देवी (65 वर्ष), प्रथम पुत्र सत्यम झा (10 वर्ष) एवं द्वितीय पुत्र शिवम झा(07वर्ष)।
सवाल उठना लाजिमी है कि - मनोज ने सपरिवार आत्महत्या क्यों की..???


अपने एवं अपने परिवार के भरण पोषण के लिए उसने प्राइवेट फिनांनस कम्पनी से ऋण ले कर पिकअप और एक ऑटो रिक्शा लिया और स्वयं एवं ड्राइवर के सहयोग से परिचालन कर आर्थिक उपार्जन कर ऋण चुकाने एवं परिवार के भरण - पोषण का प्रयास करने लगा। वह सरकार की नजर में तीन पहिया और चार पहिया वाहन का मालिक बन गया और सरकार प्रदत्त योजनाओं के लाभ से मरहूम हो गया।


  धंधा नहीं चला,दोनों गाड़ियां ऋण दाता कंपनी उठा ले गई। सरकार की नजर में वह वाहन मालिक ही रहा,राशन की सुविधा का लाभ भी नहीं मिल पाया उसे जबकि महँगाई 70 सालों के शीर्ष पर है।
इस विप्र-ब्राह्मण के खैनी के दुकान को भी स्थानीय दबंगों के द्वारा बन्द कराये जाने से इसके पास आमदनी का कोई ठोस साधन नहीं था।
अपनी बेटी की बढ़ती उम्र, स्थानीय सोहदो की कुत्सित नजर, दुर्घटना घटित होने की आशंका एवं बेटी को सुखी देखने की चाहत के फलस्वरूप बेटी की शादी के लिए दहेज की व्यवस्था के लिए माइक्रो फायनेंस कम्पनियों, स्वयं सहायता समूह एवं स्थानीय महाजन से कर्ज लिया। जिसे चुकाने में कोरोना काल से उत्पन्न आर्थिक - सामाजिक विसंगतियों के कारण असमर्थ हो गया। फिर हत्या का जिम्मेदार कौन..???


राष्ट्रीयकृत बैंक..??? जिसने उसे ऋण  मुहैया नहीं कराया। या प्राइवेट फाइनैंस कंपनी...??? जिसने उसकी मजबूरी को नहीं समझा और अवसर देने के बजाय कमाई का साधन उसकी ऑटो और पिकअप ज़ब्त कर लिया।
या दहेज को लेकर धृतराष्ट्र बना समाज - शासन - प्रशासन..??? जिसके कारण बेटी की शादी के लिए भारी भरकम कर्ज लेना पड़ा।या जाति आधारित जनगणना कराने पर अमादा प्रदेश सरकार ..??? जिसकी नजर में मनोज ब्राह्मण था ।

दो गाड़ियों का मालिक था इसलिए उसे किसी सरकारी योजना के मदद की जरूरत नहीं थी। या फिर हमारी ध्वस्त हो रही समाजिक व्यवस्था..??? जिसमें दस की लाठी एक का बोझ वाली व्यवस्था लुप्त हो गयी है।
इस लोमहर्षक व हृदय विदारक घटना ने अचानक एक साथ कई सवाल हवा में छोड़ दिए,
"जिसका कारण गरीबी" बताया जा रहा है..???


समस्तीपुर में एक ही परिवार के पांच लोगों की आत्महत्या का मामला मुफ्त सरकारी योजनाओं (जनवितरण प्रणाली) और हर हाथ को काम ( मनरेगा) पर सवाल खड़े करता है । आखिर सुविधाएं उपलब्ध हैं तो एक ही परिवार के लोग आत्महत्या के लिए क्यों बाध्य हुए। इस सामुहिक आत्महत्या का आखिर में जिम्मेदार कौन..??? विफलता किसकी..??? सरकार की ..??? सरकारी तंत्र की ..??? हमारी मौजूदा सामाजिक संरचना और व्यवस्था की..??? हमारे समाज, हमारी सिविल सोसायटी, हमारे जनप्रतिनिधि और सरकार के माथे पर यह कलंक का टीका है। विद्यापति कि निर्वाणी गंगा के गंगाजल से भी यह कलंक नहीं धुलेगा ।


दुर्भाग्यवश ये सभी उस जाति एवं समाज से आते हैं जिन्हें भारतीय संविधान ने सुखी सम्पन्न अर्थात सवर्ण वर्ग (उच्च जाति) की श्रेणी में रखा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उच्च जातियों के लिए फरवरी 2011 में राज्य आयोग का गठन किया था। आयोग ने 2015 में नीतीश सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी । इस रिपोर्ट में वर्ष 2011 तक सवर्णों की संख्या, सामाजिक- आर्थिक स्थिति के बारे में विश्लेषण किया गया है। गांवों में रहने वाले बदहाल ब्राह्मण भूमिहार , राजपूत  व उच्च जाति के मुस्लिमों शेख,सैयद,पाठान की स्थिति का जिक्र है । लेकिन उस रिपोर्ट का क्या हुआ? क्या उस रिपोर्ट के आधार पर सवर्णों की स्थिति में सुधार के लिए कोई पैकेज आया..??? बहरहाल बिहार में उच्च जातियों या सवर्णों की स्थिति का आकलन लिए गठित आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में सवर्णों उच्च जाति के मुस्लिमों ( शेख , सैयद व पाठान ) संख्या 2 करोड़ 18 लाख रिपोर्ट के मुताबिक की कुल जनसंख्या 15.6 मिलियन आबादी यानी कि 1 करोड़ 56 लाख आबादी उन सवर्ण ( ब्राह्मण, भूमिहार, राजपुत व कायस्थ) जातियों की है। उच्च जाति आयोग की रिपोर्ट सात वर्ष पहले ही नीतीश सरकार को दी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में रहने वाले 80 प्रतिशत ब्राह्मण,74.6 प्रतिशत राजपुत, 76.4 प्रतिशत भूमिहार एवं 54.8 प्रतिशत कायस्थ परिवार की चुल्हा,लकड़ी व गोइठा से जलती है । गांवों में रहने वाले उच्च जाति के 87.5 प्रतिशत शेख,63.8 प्रतिशत सैयद व 83 प्रतिशत पठान परिवार लकड़ी व गोइठा पर खाना पकाते हैं। गांवों में रहने वाले 11.8 ब्राह्मण,5 प्रतिशत भूमिहार,5.4 प्रतिशत राजपुत व 5.3 प्रतिशत कायस्थों को पक्का का मकान नहीं है,जिसके कारण ये लोग झोपड़ी में जिन्दगी बसर करते हैं। प्रदेश में इन दिनों शौचालय बनाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास किया जा रहा है। लेकिन उच्च जाति के आयोग के मुताबिक प्रदेश के गांवों में 47 प्रतिशत ब्राह्मण 33.9 प्रतिशत  भूमिहार,42.7 प्रतिशत राजपुत एवं 25.5 प्रतिशत कायस्थ परिवार के घर में शौचालय नहीं है, जिसके कारण ये लोग खुले शौच के लिए बाध्य है।


उच्च जाति के 52.8 प्रतिशत शेख, 23.5 प्रतिशत सैयद व 49.9 प्रतिशत पठान शौचालय नहीं रहने के कारण खुले में शौच के लिए जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक सवर्णों व उच्च जाति के मुस्लिमों शिक्षा की स्थिति भी गांवों में काफी दयनीय है । रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में ब्राह्मण , राजपुत भूमिहार व कायस्थ जाति के मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति गांवों में बंद से बदतर है।
वक्त आ गया है अब जातीय की जगह आर्थिक आधार पर आरक्षण की पहल पूरे देश में होनी चाहिए वर्ना ना जाने कितने और लोग ऐसे ही काल के गाल में समा जाएँगे।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित।

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