कुशी अमावस्या विशेष... 2022✍🏻 कुशी अमावस्या 27 अगस्त,22 शनिवार कों मनाई जाएगी, इस भाद्रपद अमावस्या के दिन पूजा करने से कालसर्प दोष दूर होता है : पंकज झा शास्त्री

 कुशी अमावस्या विशेष... 2022✍🏻

कुशी अमावस्या 27 अगस्त,22 शनिवार कों मनाई जाएगी, इस भाद्रपद अमावस्या के दिन पूजा करने से कालसर्प दोष दूर होता है : पंकज झा शास्त्री

जनक्रांति कार्यालय रिपोर्ट


इस भाद्रपद अमावस्या कों कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम सें भी जाना जाता है : पंकज झा शास्त्री

अध्यात्म डेस्क/भारत, ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 24 अगस्त,2022)। भाद्रपद अमावस्या कों बहुत ही महत्व दिया गया है । यह अमावस्या 27 अगस्त दिन शनिवार कों मनाई जाएगी । इस भाद्रपद अमावस्या को दिन पूजा करने सें कालसर्प दोष दूर होता है। इस अमावस्या कों धार्मिक रूप सें कुशा कों इकट्ठा किया जाता है व इस कुशा का प्रयोग साल भर धार्मिक कार्यों एवं पितृ कार्यों  के प्रयोग में लिया जाता है ।

इस भाद्रपद अमावस्या कों कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम सें भी जाना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से माना जाता हैं कि इस पवित्र घास में प्यूरिफिकेशन एजेंट होते है। इसका उपयोग दवाईयों में भी किया जाता है। कुश में एंटी ओबेसिटी, एंटीऑक्सीडेंट और एनालजेसिक कंटेंट है। इसमें ब्लड शुगर मेंटेन करने का गुण भी होता है।


पण्डित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि कुश की पत्तियाँ नुकीली, तीखी और कड़ी होती है। धार्मिक दृष्टि से यह बहुत पवित्र समझा जाता है और इसकी चटाई पर राजा लोग भी सोते थे। इसका आसन, अंगुठी और भी कई वस्तु बनाकर उपयोग में लाया जाता हैं। वैदिक साहित्य में इसका अनेक स्थलों पर उल्लेख है।

अथर्ववेद में इसे क्रोधशामक और अशुभनिवारक बताया गया है। इसके साथ ही पंकज झा शास्त्री का कहना है कि आज भी नित्य नैमित्तिक धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है। कुश से तेल निकाला जाता था, ऐसा कौटिल्य के उल्लेख से ज्ञात होता है। भावप्रकाश के मतानुसार कुश त्रिदोषघ्न और शैत्य-गुण-विशिष्ट है। उसकी जड़ से मूत्रकृच्छ, अश्मरी, तृष्णा, वस्ति और प्रदर रोग को लाभ होता है।


गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था। अमृत का संसर्ग होने से कुश को पवित्री कहा जाता है (महाभारत आदिपर्व के अध्याय 23 का 24 वां श्लोक)। मान्यता है कि जब किसी भी जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा की आती है तो कुश के पानी मे ड़ालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है।

कुश वेसे तो किसी भी अमावस्या में उपयोग में लाया जा सकता हैं, लेकिन भाद्रपद अमावस्या के कुश का विशेष महत्व होता है। मिथिलांचल मे लोगो का मानना है कि जिनके पिता स्वर्गलोक प्रस्थान कर चुके हैं, उन्हें इस दिन जरुर कुश उखारना चाहिये।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा पंकज झा शास्त्री की अध्यात्म विचार कार्यालय से प्रकाशित व प्रसारित

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