नवरात्र में कलश(घट) स्थापना का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्त्वपूर्ण स्थान : पंकज झा शास्त्री

 नवरात्र में कलश(घट) स्थापना का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्त्वपूर्ण स्थान : पंकज झा शास्त्री


जनक्रांति कार्यालय से पंकज झा शास्त्री


अपने भीतर की ऊर्जा जगाना ही देवी उपासना का मुख्य प्रयोजन है। दुर्गा पूजा और नवरात्र मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं : पंकज झा शास्त्री

कलश(घट ) स्थापना शुभ मुहूर्त -
26 सितम्बर को प्रातः 06:02 से दि 07:31 तक,इसके उपरांत दि 09:03 से दि 02:59 तक सर्वोत्तम रहेगा।


अध्यात्म डेस्क/दरभंगा/मधुबनी, बिहार ( जनक्रांति हिंदी न्यूज बुलेटिन कार्यालय 25 सितंबर, 2022 )। दुर्गा पुजा को लेकर तैयारी अंतिम चरण मे है। किसी भी शुभ कार्य एवं पूजा मे कलश का विशेष महत्त्व है विशेष कर जब दुर्गा पूजा मे इसका महत्त्व पूर्ण स्थान है। कलश का महत्त्व धार्मिक दृष्टि के साथ साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्व बढ़ जाता है। शास्त्रों मे कहा गया है कि जिस प्रथम दिन दुर्गा पूजा मे घट स्थापना होती है उसी दिन के अनुसार माँ दुर्गा के आगमन वाहन निर्धारित होता है,इसबार घट स्थापना या कलश स्थापना सोमवार को हो रहा है यानि माता गज वाहन से आगमन कर रही है। 

इसबार शारदीय नवरात्र 26 से 05 अक्टूबर तक चलेगी। माता का आगमन और गमन वाहन गज होने से अशुभ घटनाओं की तुलना मे शुभ घटनाओं की अधिकता रहेगी। घट स्थापन द्वारा ब्रह्माण्ड दर्शन मिलता है एवं शरीर रूपी घट से तार्तमय बनता है। कलश पात्र का जल चुम्बकीय विद्युत ऊर्जा को आकर्षित करता है एवं ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का संवाहक बन जाता है। अर्थात जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बैटरी या कोषा होता है ठीक वैसे ही कलश ब्रह्माण्डीय ऊर्जा को संकेंद्रित कर उसे बहुगुणित कर आसपास वितरित कर वातावरण को दिव्यता प्रदान करता है।

कच्चे सूत्रों का दक्षिणावर्ती वलय ऊर्जावलय को धीरे-धीरे चारों ओर वर्तुलाकार संचारित करता है। संभवतः सूत्र (बाँधा गया लच्छा) विद्युत कुचालक होने के कारण ब्रह्माण्डीय बलधाराओं का अपव्यय रोकता है।
कलश स्थापना का आध्यात्मिक महत्व यह है कि कलश को भू-पिंड एवं ब्रह्माण्डिय स्वरूप मानते हुए ब्रह्मा सहित देवी देवताओ के निवास का केंद्र माना जाता है। कलश को जल के देवता वरुण देव का प्रतीक माना जाता हैं।

कलश का मुख विष्णु एवं कंठ पर भगवान शिव एवं मध्य में देवीशक्ति उसके मूल यानी निचली तली में ब्रह्मा जी का निवास एवं घट पर स्थापित नारियल या दीप को लक्ष्मी का प्रतीक माना हैं। कलश के जल में सभी देवी देवताओं का समावेश मानते हुए एक ही स्थान पर सभी देवी देवताओं का पूजन संभव होता है। जब ब्रह्माण्डिय रूपी कलश में सृष्टि के निर्माणकर्ता, पालनकर्ता, दुःखहर्ता त्रिदेवता, आदि शक्ति अन्य देवी देवताओं सहित विराजते हैं, तो उनके समावेश से घर की बड़ी से बड़ी विपत्तियों से छुटकारा मिलना संभव हो सकता है एवं अकस्मात मृत्यु योग भी टाला जा सकता हैं।

पंडित पंकज झा शास्त्री के अनुसार नवरात्र के समय प्रकृति में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है, जिसको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। व्रत में हम कई चीजों से परहेज करते हैं और कई वस्तुओं को अपनाते हैं। आयुर्वेद की धारणा है कि पाचन क्रिया की खराबी से ही शारीरिक रोग होते हैं। क्योंकि हमारे खाने के साथ जहरीले तत्व भी हमारे शरीर में जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि व्रत से पाचन प्रणाली ठीक होती है। व्रत उपवास का प्रयोजन भी यह है कि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केेंद्रित कर सकेें। मनोविज्ञान यह भी कहता है कि कोई भी व्यक्ति व्रत-उपवास एक शुद्ध भावना के साथ रखता है। उस समय हमारी सोच सकारात्मक रहती है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, जिससे हम अपने भीतर नई ऊर्जा महसूस करते हैं। आयुर्वेद में शारीरिक शुद्धि के लिए पंचकर्म का प्रावधान भी नवरात्र में करने का है।


पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि इस समय प्रकृति अपना स्वरूप बदलती है। वातावरण में एक अलग-सी आभा देखने को मिलती है। पतझड़ के बाद नवीन जीवन की शुरुआत, नई पत्तियों और हरियाली की शुरुआत होती है। संपूर्ण सृष्टि में एक नई ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने के लिए हमें व्रतों का संयम-नियम बहुत लाभ पहुंचाता है। नवरात्र में कृषि-संस्कृति को भी सम्मान दिया गया है। मान्यता है कि सृष्टि की शुरुआत में पहली फसल जौ ही थी। इसलिए इसे हम प्रकृति (मां शक्ति) को समर्पित करते हैं।


हमारी संस्कृति में देवी को ऊर्जा का श्चोत माना गया है। अपने भीतर की ऊर्जा जगाना ही देवी उपासना का मुख्य प्रयोजन है। दुर्गा पूजा और नवरात्र मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं। इन सबके मूल में है मनुष्य का प्रकृति से तालमेल, जो जीवन को नई सार्थकता प्रदान करता है।
कलश(घट ) स्थापना शुभ मुहूर्त -
26 सितम्बर को प्रातः 06:02 से दि 07:31 तक,इसके उपरांत दि 09:03 से दि 02:59 तक सर्वोत्तम रहेगा।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा अध्यात्म विचार प्रकाशित व प्रसारित।

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