बेटियों पर अत्याचार आखिर कब बंद होगी...??? : अजीत सिन्हा

 बेटियों पर अत्याचार आखिर कब बंद होगी...??? : अजीत सिन्हा


जनक्रांति कार्यालय से संवाद सूत्र की रिपोर्ट


बलात्कार की रोकथाम हेतु न ही किसी सरकार के पास  नीति है और न ही इच्छा शक्ति : अजीत सिन्हा


दुःख की बात है कि आज सरकारें शर्मसार नहीं हैं अपितु पीड़ित के परिजन ही अपने को शर्मसार और असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि धरातल पर मुझे कानून की राज दिखती नहीं है : अजीत सिन्हा

बोकारो,झारखण्ड ( जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन १६ सितंबर, २०२२)। कमोबेश सभी सरकारें नारी उत्थान व सशक्तिकरण की बात करती हैं लेकिन देखी जाये तो आज बेटियों पर जितने जुल्म हो रहे हैं उतनी घटनायें पहले कभी भी नहीं आई और इसके लिए सोशल मीडिया सहित निजी और सरकारी चैनलों से समाचार आग की भांति फैल रही है और फिर भी सरकारों की न ही नींद खुल रही है और न ही बलात्कार जैसी घटनाओं को रोकने में कामयाब ही हो रही हैं और इसकी रोकथाम हेतु न ही किसी सरकार के पास  नीति है और न ही इच्छा शक्ति।

देखने में आ रहा है कि आज झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल समेत सभी राज्यों में इस तरह की समाचार आना अब आम बात हो गई है लेकिन दुःख की बात है कि आज सरकारें शर्मसार नहीं हैं अपितु पीड़ित के परिजन ही अपने को शर्मसार और असहाय महसूस कर रहे हैं क्योंकि धरातल पर मुझे कानून की राज दिखती नहीं है, कहीं कोई अमेरिकन स्टाइल में खुले आम फायरिंग कर लोंगो की जान ले रहा है और कानून व्यवस्था को चुनौती दे रहा है तो कहीं बेटियों का बलात्कार कर पेड़ पर टांग दिया जा रहा है तो कहीं बात न मानने पर पीड़िता को जलाकर मार दिया जा रहा है तो कहीं लव जेहाद का सहारा लेकर बेटियों का या तो धर्म परिवर्तित किया जा रहा है और बात नहीं मानने पर उनकी हत्या कर दी जा रही है। उपरोक्त कथन समाजसेवी अजीत सिन्हा ने कहा । उन्होंने आगे कहा की आखिर अपना देश इन 

 मामलों में किस ओर जा रहा है और ऐसी परिस्तिथियों के लिए जिम्मेदार कौन है..? क्या केवल सरकारें या बेटियों के माता पिता और परिवार भी। ये निश्चित रूप से मनन की विषय है और कठोर कार्रवाई के साथ बेटों के साथ बेटियों पर भी नजर रखने की। क्योंकि अधिकतर मामलों में आपसी प्रेम के एंगल के आड़ में अपराध की पृष्ठभूमि लिखी जा रही है।


आगे अजीत सिन्हा ने कहा कि आखिर समाज व परिवार किस ओर जा रहा है और सभ्यता एवं संस्कार कहां जा रही है कि लोग अपनी इज्जत - आबरू को खोते जा रहे हैं जबकि उन्हें पता है या पता होनी चाहिये कि आज समाज में जेहाद कई रूपों में पसरा हुआ है जिसमें लव जेहाद के अंतर्गत घटनायें अपनी ऊँचाइयों पर है और भोली - भाली बेटियाँ इसकी शिकार हो रही हैं और इसके पीछे घर के घरेलु वातावरण उतने ही जिम्मेदार हैं जितनी टीवी - सिनेमा के माध्यम से परोसी जानी वाली और बेटों - बेटियों के दिमाग में भरी जाने वाली आपत्तिजनक सामग्री।
इस पृथ्वी पर बहुतायत रूप पुरुष - महिला वर्ग ही हैं और अपवाद के रूप में शिखंडी भी।

समाज में सेक्स का स्थान शारीरिक संतुष्टि के साथ वंश परंपरा को बढ़ाने के लिए ही है लेकिन इस संबंध का दुरूपयोग अब आम बातें हो गई हैं और मौका मिलने पर लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बंध बनाने में परहेज नहीं कर रहे हैं और चोरी - छिपे भी ऐसे सम्बंध बनाये जा रहे हैं जबकि यह एक वैवाहिक परम्परा की एक भाग है जो आगे चलकर संतुष्टि के साथ वंश को जनित करती है चाहे बच्चे का जन्म लड़का या लड़की के रूप में हो। यही बच्चे आगे जाकर संबंधों की धागा को पिरोते हैं वे भाई - बहन, माता - पिता, चाचा - चाची, फुआ - फ़ू़फा, काका - काकी इत्यादि कहलाते हैं।


आज बच्चे समय से पहले ही व्यस्क हो जा रहे हैं और इसमे उनकी पारिवारिक परिवेश के साथ मनोरंजन के नाम पर परोसी जाने वाली आपत्तिजनक सामाग्री ही है और जब से मोबाइल की प्रयोग तेजी से बढ़ी है तब से सेक्स संबंधित बातें आम हो जा रही हैं, बच्चा जो देखता है वही सीखता है चाहे उसे ऐसी सामाग्री परिवार से या सोशल मीडिया या मीडिया या समाज से या मनोरंजन के यंत्रों से।
दो लिंगधारी (स्त्री - पुरुष) के बीच जब प्रेम वश आपसी सहमति से बिना दबाव के संबंध बनते हैं तो उसे प्रेम की पराकाष्ठा समझी जाती है लेकिन जब यही संबंध ज़बरदस्ती, भय, डर पैदा कर बनाई जाती है तो इसे बलात्कार कहा जाता है और अधिकतर मामलों में ऐसी घटनाएं बेटियों - बहुओं के रूप में महिलाओं के साथ होती हैं और कुछेक मामलों में पत्नी या पति या नाबालिग बच्चों के साथ भी घटती है और देखने को यह भी मिल रही है तीन - पांच - सात - दस - बारह साल की बच्चियों के साथ भी बलात्कार जैसी घटनायें भी सुनी जा रही है जिससे यह प्रतीत होता है कि आज का समाज अधमता की ओर अग्रसर है और उनकी स्तिथि भूखे भेड़ियों जैसी हो गई है और इससे दिन प्रतिदिन मानवता शर्मसार हो रही है।


लव जेहाद एक धर्म विशेष के लोंगो की सोंची - समझी साजिश है और इसके मूल में जनसंख्या जेहाद ही है जो आगे जाकर वोट जेहाद में परिणत होकर सत्ता प्राप्ति में एक टूल की तरह इस्तेमाल हो रही है और इसके लिए धर्म विशेष के लड़कों को बाकायदा फंडिंग की जाती है ताकि वे हिंदू - जैन धर्म की ल़डकियों को अपने चंगुल में फंसाकर उनसे उनके धर्म को कबूल कराएं और सफल नहीं होने पर उन्हें जान से मार दें।

और प्रतिदिन सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता को देखने और सुनने को मिलते हैं और इसे रोकने हेतु सरकार को एक कठोरतम कानून बनाकर लागू करने की आवश्यकता तो है हीं साथ में अन्य धर्म के बेटी वालों परिवार को जागरूक करने की भी ताकि वे धर्म विशेष के लोंगो के चाल को समझ सकें और घटनाओं पर अंकुश लग सके।


जनक्रांति प्रधान कार्यालय से प्रकाशक/सम्पादक राजेश कुमार वर्मा द्वारा संवाद सूत्र की रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित।

Comments

Popular posts from this blog

महज सोलह दिनों में छह रेल सिग्नल-कर्मचारी कार्य करते हुए हो गए रन-ओवर

पुलवामा अटैक में शहीद हुए जवानों को ब्लड फ़ोर्स टीम के सदस्यों द्वारा दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

दो दिवसीय इंटरनेशनल सेमिनार का आयोजन विद्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग द्वारा किया गया आयोजित