12 जनवरी:विवेकानंद जयंती : राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष शिकागो(अमरीका)के धर्मसंसद में स्वामी विवेकानंद का संदेश
12 जनवरी:विवेकानंद जयंती : राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष शिकागो(अमरीका)के धर्मसंसद में स्वामी विवेकानंद का संदेश
जनक्रांति कार्यालय से पंकज कुमार श्रीवास्तव का आलेख
12 जनवरी,1863 को कोलकाता में जन्मे नरेंद्रनाथ स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए.11सितम्बर, 1893 में शिकागो(अमरीका)की धर्म संसद में उनके द्वारा दिए गए भाषण ने पूरी दुनिया के सामने भारत की एक सकारात्मक रचनात्मक और सृजनात्मक छवि प्रस्तुत की थी।पेश है,उनके प्रसिद्ध भाषण का प्रमुख अंश-
समाचार डेस्क, जनक्रांति हिन्दी न्यूज बुलेटिन ( 12 जनवरी, 2022) ।
अमेरिका के बहनों और भाइयों,
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।
मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजरायलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।
मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है।
भला हम भगवान को खोजने कहां जा सकते हैं अगर उसे अपने दिल और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते.
विवेकानंद
भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।
वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।
सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।
अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है।
मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
उपरोक्त जानकारी वाट्सएप माध्यम से पंकज कुमार श्रीवास्तव द्वारा प्रेस कार्यालय को दिया गया।
जनक्रांति प्रधान कार्यालय से राजेश कुमार वर्मा प्रकाशक/सम्पादक द्वारा कार्यालय रिपोर्ट प्रकाशित व प्रसारित।
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